इससे पहले की नीतीश कुमार विपक्षी गठबंधन के सिलसिले में भारत राष्ट्र समिति के प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से मिलते और बात करते उससे पहले खबर है वे कांग्रेस से तालमेल के लिए तैयार हैं। बताया जा रहा है कि उनकी दो शर्तें हैं, जिनको मान लेने पर वे कांग्रेस से तालमेल कर लेंगे या उस मोर्चे में शामिल हो जाएंगे, जिसमें कांग्रेस रहेगी। ध्यान रहे अब तक केसीआर के नाम से मशहूर चंद्रशेखर राव अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस से दूरी बनाए हुए थे। इसका कारण यह था कि तेलंगाना में उनकी पूरी राजनीति कांग्रेस के वोट बैंक पर चल रही है। इसलिए अगर कांग्रेस के साथ जाना जोखिम का काम है। लेकिन अब वे जोखिम उठाने को तैयार हो गए हैं।
सवाल है कि अब ऐसा क्या बदल गया कि के जोखिम उठाने को तैयार हो गए हैं? जो सबसे बड़ा बदलाव है वह ये है कि उनकी बेटी के कविता दिल्ली की शराब नीति से जुड़े कथित घोटाले में फंसी हैं। ईडी ने उनसे दो बार पूछताछ की है। उनको साउथ ग्रुप या साउथ कार्टेल से जुड़ा बताया जा रहा है, जिसने दिल्ली सरकार को कथित तौर पर रिश्वत देकर मनमाफिक शराब नीति बनवाई थी। इस मामले में सीबीआई ने मंगलवार को पूरक आरोपपत्र दाखिल किया तो उसमें कविता के एक बेहद करीबी व्यक्ति का नाम भी शामिल किया गया। तभी केसीआर और उनकी पार्टी की चिंता बढ़ी है। उनको लग रहा है कि ईडी या सीबीआई के किसी आरोपपत्र में कविता का भी नाम आ सकता है।
इसके अलावा दूसर कारण यह है कि उनको दिख रहा है कि विपक्ष की ज्यादातर पार्टियां किसी न किसी मजबूरी या राजनीतिक अनिवार्यता की वजह से एकजुट होने की जरूरत मान रही हैं। ध्यान रहे खुद केसीआर पहले कई बार संघीय मोर्चा बनाने का प्रयास कर चुके हैं। अब सभी विपक्षी पार्टियां इसकी जरूरत मान रही हैं। आम आदमी पार्टी से लेकर तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी और देश की दोनों बड़ी कम्युनिस्ट पार्टियों ने नीतीश कुमार के प्रयास को हरी झंडी दी है और कहा है वे उनके साथ हैं। ऐसे में अगर केसीआर साथ नहीं आते हैं तो अलग थलग पड़ सकते हैं।
सो, उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे में शामिल होने की दो शर्त रखी है। पहली शर्त तो यह है कि राहुल गांधी विपक्ष का चेहरा नहीं होंगे। उनको पता है कि चुनाव से पहले किसी को चेहरा नहीं बनाया जाना है। इसलिए बिना कहे उनकी यह शर्त मान ली जाएगी। दूसरी शर्त यह है कि जहां कांग्रेस मजबूत है वहां वह लड़े और बाकी जगहों पर प्रादेशिक पार्टियों के लिए जगह छोड़े। यह भी बहुत सामान्य शर्त है और तालमेल इसी आधार पर होगा भी। लेकिन सवाल है कि क्या इस शर्त के साथ वे तेलंगाना में भी कांग्रेस से तालमेल करना चाहते हैं? ऐसा होना राजनीतिक रूप से ठीक नहीं होगा क्योंकि कांग्रेस अगर बीआरएस के साथ मिल कर लड़ती है तो विपक्ष का पूरा स्पेस भाजपा के लिए खाली हो जाएगा और सत्ता विरोधी पूरा वोट उसके साथ जाएगा, जिसका नुकसान केसीआर को हो सकता है।