कांग्रेस की ओर से विपक्षी एकजुटता बनाने का काम मल्लिकार्जुन खड़गे संभाल रहे हैं। उन्होंने इसे चैलेंज की तरह लिया है। लेकिन मुश्किल यह है कि एक पार्टी को मनाते हैं तब तक दूसरा रूठ जाता है। उनकी पहुंच से बाहर भी राजनीति में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, जिन पर उनका नियंत्रण नहीं है और उससे उनके प्रयास प्रभावित होते हैं। राहुल गांधी ने सावरकर पर बयान दे दिया तो उद्धव ठाकरे गुट नाराज हो गया, जिसे मनाने में खड़गे को खासी मशक्कत करनी पड़ी, जबकि शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत संसद सत्र के दौरान विपक्ष के साथ तालमेल बनाने और सरकार पर हमला करने में बहुत सक्रिय भूमिका निभाते थे।
इसी तरह अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी को लेकर कोई बयान दे दिया तो तृणमूल कांग्रेस के नेता नाराज हो गए और खड़गे की बुलाई बैठकों का बहिष्कार शुरू कर दिया। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने अदानी समूह का समर्थन कर दिया तो बाकी सहयोगी पार्टियों में कंफ्यूजन हो गया कि अब आगे इस पर कांग्रेस की रणनीति क्या होगी। इस तरह की खींचतान के बीच खड़गे किसी तरह से सभी विपक्ष पार्टियों के बीच एक न्यूनतम सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस कोशिश में उन्होंने तीन विपक्षी नेताओं से बात की है।
खड़गे ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात की, जिसके बाद चर्चा है कि नीतीश इस महीने दिल्ली का दौरा करेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष ने डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से बात की। उसके बाद दिलचस्प घटनाक्रम यह हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चेन्नई पहुंचे, जहां स्टालिन ने उनके प्रति कमाल का सद्भाव दिखाया। केंद्र सरकार ने भी उदारता दिखाते हुए स्टालिन के कहने पर राज्य के कावेरी डेल्टा इलाके में चिन्हित तीन कोयला खंडों को राष्ट्रीय नीलामी की सूची से हटा दिया। चेन्नई यात्रा के दौरान मोदी और स्टालिन के बीच जैसी केमिस्ट्री दिखी उससे सवाल भी उठ रहे हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से भी टेलीफोन पर बात की। सावरकर विवाद के बाद से ही अंदाजा लगाया जा रहा था कि खड़गे उनसे बात करके उनको शांत करने की कोशिश करेंगे। खड़गे ने यह कोशिश की है। बताया जा रहा है कि खड़गे जल्दी ही दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेताओं से भी बात करेंगे। हालांकि इस बात को लेकर हैरानी जताई जा रही है कि खड़गे ने नीतीश कुमार, एमके स्टालिन और उद्धव ठाकरे से बात की तो इसकी जानकारी मीडिया को देने की क्या जरूरत थी? अगर वे सचमुच विपक्षी एकता बनाने की कोशिश कर रहे हैं तो मीडिया में चर्चा करके यह काम कैसे होगा? राजनीति में बड़ी योजनाएं गुपचुप तरीके से बनती हैं। तभी ऐसा लग रहा है कि तीनों नेताओ से खड़गे की बातचीत का ब्योरा मीडिया में आने का मतलब है कि इसका मकसद कुछ और है।