बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और विधान परिषद के सदस्य उपेंद्र कुशवाहा की राह अलग हो रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुशवाह जदयू से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले हैं। उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय जदयू में कर दिया था। अब वे फिर से अपनी पार्टी को पुनर्जीवित करने वाले हैं। ध्यान रहे 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने पार्टी बनाई थी और भाजपा से तीन सीटों पर उनका तालमेल हुआ था। उनकी पार्टी तीनों लोकसभा सीट जीती थी और वे नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में केंद्रीय मंत्री बने थे। एक बार फिर वे उसी फॉर्मूले पर काम करने की तैयारी में हैं। हालांकि भाजपा की पहली कोशिश उनको पार्टी में शामिल कराने की है। भाजपा चाहती है कि वे पार्टी में शामिल हो जाएं और लोकसभा का चुनाव लड़ें।
उनकी आगे की राजनीति को लेकर एक चर्चा यह भी है कि बिहार में आरसीपी सिंह के साथ मिल कर लव कुश का नया समीकरण बना सकते हैं। नब्बे के दशक में यह समीकरण नीतीश कुमार और शकुनी चौधरी ने बनाया था, जिसको भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया और अंततः राजद का 15 साल का राज खत्म हुआ। उपेंद्र कुशवाहा उस तरह का प्रयास भी कर सकते हैं लेकिन इसमें उनको आरसीपी की कोई मदद नहीं मिलेगी। नीतीश की पार्टी के नंबर दो नेता रहे आरसीपी सिंह भले केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके लेकिन कुर्मी मतदाताओं के बीच उनकी वैसी स्वीकार्यता नहीं है, जैसी कोईरी मतदाताओं में कुशवाहा की है। दूसरी बात यह है कि भाजपा अब पहले जैसी छोटी पार्टी नहीं है। इसलिए वह नया नीतीश कुमार नहीं बनाना चाहती है। वैसे भी बिहार में विधानसभा का चुनाव 2025 के आखिर में है। इसलिए अभी उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी की राजनीति साथ हो या अलग हो वह लोकसभा चुनाव के हिसाब से ही होगी।