तभी यह सवाल है कि संसद या सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी क्यों कानूनों पर विचार करेगी? क्यों नहीं संसद की कृषि संबंधी संसद की स्थायी समिति को इस पर विचार करने का जिम्मा दिया जाए? ध्यान रहे तीनों कृषि कानूनों को लेकर विपक्षी पार्टियों ने भारी विरोध किया था। विपक्ष के विरोध को दरकिनार करके सरकार ने कानून पास किया। विपक्ष कानूनों को संसदीय समिति में या दोनों सदनों की साझा समिति में भेजने की मांग कर रही थी। अब मौका है कि सरकार उस गलती को दुरुस्त करे और कानूनों पर रोक लगाने के साथ ही इसके नए मसौदे पर विचार के लिए इसे संसदीय समिति के पास भेजे।
संसदीय समिति के पास भेजने का फायदा यह है कि उसमें विपक्षी पार्टियों के सांसद भी होंगे और उस पर किसान संगठनों का भी भरोसा बनेगा। संसदीय समिति मसौदे पर हर वर्ग और हर किसान संगठन की राय ले सकती है। अगर सरकार डेढ़ साल के लिए भी कानूनों पर रोक लगाने को तैयार है तो उतना समय बहुत होता है, जिसमें संसद की स्थायी समिति या प्रवर समिति इस पर गंभीरता से विचार करके अपनी रिपोर्ट दे। उसके बाद सरकार उस विधेयक को संसद से पास कराए। दूसरी बात यह है कि अगर सरकार इस पर डेढ़ साल के लिए रोक लगाने को तैयार है तो इसका मतलब है कि इन कानूनों की तत्काल अनिवार्यता नहीं है। इसलिए इस पर रोक लगा कर संसदीय समिति में विचार कराया जा सकता है। पर इसके लिए सरकार को नया बिल बनाना होगा, जिस पर सरकार शायद ही तैयार हो क्योंकि उसने इन कानूनों को प्रतिष्ठा का विषय बनाया है।