भारत सरकार क्या पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय के बहाने देश की ब्यूरोक्रेसी को कोई सबक देना चाहती है? अधिकारियों की बिरादरी से ही यह सवाल उठ रहा है और साथ ही यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या केंद्र और राज्यों के झगड़े में अधिकारी बलि का बकरा बन रहे हैं? या कहीं ऐसा तो नहीं है कि अधिकारी राज्यों के साथ अपने हित ज्यादा जोड़ ले रहे हैं और उसकी वजह से सेवा शर्तों का उल्लंघन हो रहा है? पश्चिम बंगाल में कई मामलों में यह देखने को मिला है। आईपीएस अधिकारी और कोलकाता के पुलिस कमिश्नर रहे राजीव कुमार के मामले में भी ममता और केंद्र सरकार के बीच ऐसा ही टकराव हुआ था और अब आईएएस अधिकारी अलपन बंदोपाध्याय के नाम पर हुआ है।
तभी कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार को लग रहा है कि अगर इसी तरह अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ करीबी बनाएंगे, केंद्रीय एजेंसियों से टकराव बढ़ाएंगे और प्रधानमंत्री तक की अनदेखी करने लगेंगे तो केंद्र का इकबाल बचेगा? तभी कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने अलपन बंदोपाध्याय के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बुलाई बैठक में शामिल नहीं होने के मुद्दे पर गंभीर रुख लिया है। हालांकि इसका नतीजा क्या होगा यह नहीं कहा जा सकता है लेकिन अभी यह मैसेज दिया गया है कि अधिकारी यह न समझें कि राज्य सरकारें उनको बचा लेंगी।
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