Deputy Speaker Lok Sabha आजाद भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि लोकसभा उपाध्यक्ष का चुनाव कराने का मामला अदालत में पहुंचा है। संसद की देहरी पर माथा टेक कर पहली बार संसद पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 17वीं लोकसभा के गठन के दो साल बीत जाने के बावजूद अभी तक निचले सदन में उपाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की है। इसके खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें अदालत से कहा गया है कि वह लोकसभा अध्यक्ष को निर्देश जल्दी से जल्दी उपाध्यक्ष का चुनाव कराने का निर्देश दे। यह संसद की परंपराओं और नियमों का उल्लंघन है। सरकार कह सकती है कि संविधान में यह नहीं लिखा है कि सदन के गठन के कितने दिन के अंदर उपाध्यक्ष चुनना है। लेकिन कई चीजें संसदीय परंपरा से चलती हैं।
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गौरतलब है कि दसवीं लोकसभा के समय से यह परंपरा चल रही है कि लोकसभा का उपाध्यक्ष विपक्ष का कोई नेता बनेगा। दसवीं लोकसभा में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो भाजपा के मल्लिकार्जुनैया और उसके बाद सूरजभान उपाध्यक्ष बने थे। मनमोहन सिंह की सरकार में पहले कार्यकाल में अकाली दल के चरनजीत सिंह अटवाल और दूसरे कार्यकाल में भाजपा के कड़िया मुंडा उपाध्यक्ष रहे। लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले कार्यकाल में भाजपा की सहयोगी पार्टी अन्ना डीएमके के एम थंबीदुरैई को उपाध्यक्ष बनाया। पर 17वीं लोकसभा के दो साल बाद भी भाजपा और केंद्र सरकार को कोई अनुकूल नेता ही नहीं मिल रहा है, जिसे उपाध्यक्ष बनाया जाए। भाजपा विपक्ष को यह पद नहीं देना चाहती है और उसका साथ देने वाली पार्टियों में अन्ना डीएमके का सिर्फ एक सांसद है वह भी पहली बार का, जबकि वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल अपना उपाध्यक्ष बनाने को राजी नहीं हैं। शिव सेना साथ छोड़ कर चली गई है, जबकि जदयू के नेता को उच्च सदन में उपसभापति बनाया गया है।
लोकसभा उपाध्यक्ष का मामला हाई कोर्ट पहुंचा
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