मराठा क्षत्रप शरद पवार की पार्टी और परिवार में क्या वैसी ही लड़ाई होगी, जैसी महाराष्ट्र के अन्य क्षत्रपों को घरों में होती रही है? बाल ठाकरे और गोपीनाथ मुंडे के परिवार में बड़ी लड़ाई हुई। जब बाल ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को पार्टी की कमान सौंपी थी तब नाराज होकर राज ठाकरे ने अलग पार्टी बनाई थी। उद्धव को कमान मिलने से पहले राज ठाकरे को ही स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जा रहा था। इसी तरह गोपीनाथ मुंडे के परिवार में हुआ। उनकी बेटियों- पंकजा और प्रीतम मुंडे के खिलाफ उनके भतीजे धनंजय मुंडे ने बगावत की और उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में पंकजा को हराया। इसी तरह की लड़ाई पवार परिवार में भी हो सकती है।
शरद पवार के साथ एडवांटेज यह है कि वे अभी राजनीति में सक्रिय हैं। शनिवार को जब उन्होंने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया तो उनसे राष्ट्रीय अध्यक्ष के बारे में पूछा गया था तब उन्होंने दो टूक अंदाज में कहा था कि वहां वैकेंसी नहीं है। यानी वे खुद पार्टी की कमान संभाले रहेंगे। इससे यह भी साबित हुआ कि पिछले दिनों उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का जो ऐलान किया था वह एक किस्म के लंबे राजनीतिक धारावाहिक की शुरुआत थी, जिसकी आगे की कड़ियां अब सामने आ रही हैं।
सबको पता है कि जिस तरह से राज ठाकरे के अलग होने के बावजूद शिव सेना का वोट उद्धव ठाकरे के साथ रहा उसी तरह अगर शरद पवार के भतीजे अजित पवार नाराज होकर अलग होते हैं तो एनसीपी का वोट उनके साथ नहीं जाएगा। वह वोट सुप्रिया सुले के साथ रहेगा। शरद पवार ने बड़ी होशियारी से अपनी बेटी के साथ साथ अपने भरोसे के सबसे पुराने नेता प्रफुल्ल पटेल को भी कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया है। प्रफुल्ल पटेल पार्टी के पुराने नेताओं के प्रतिनिधि हैं। ध्यान रहे लगभग सभी पुराने नेताओं को अजित पवार से समस्या है और वे नहीं चाहते हैं कि पार्टी का उत्तराधिकार उनके हाथ में जाए।
सो, ऐसा लग रहा है कि अजित पवार के सामने ज्यादा विकल्प नहीं हैं। शरद पवार के रहते वे पार्टी नहीं तोड़ पाएंगे। वे दो बार इसकी कोशिश कर चुके हैं। अगर पार्टी तोड़ कर कुछ विधायकों के साथ नहीं निकलते हैं तो भाजपा के लिए भी उनकी कोई खास उपयोगिता नहीं रहेगी। एनसीपी को नुकसान पहुंचाने के लिए भाजपा उनको साथ ले सकती है लेकिन उन्हें कोई अहम पद या जिम्मेदारी नहीं मिलेगी। एनसीपी में रह कर अब नेता विपक्ष से आगे बढ़ने की संभावना भी खत्म हो गई है। शरद पवार उनको कोई और बड़ी जिम्मेदारी नहीं सौंपने वाले हैं। हां, यह सही है कि भाजपा से नजदीकी दिखाने और एनसीपी से अलग होने की चर्चा करा कर अजित पवार ने अपने खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में राहत हासिल कर ली है। यह भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं है।