
शिव सेना की बगावत पूरी तरह से लोक जनशक्ति पार्टी की बगावत का रीमेक है। सब कुछ बिल्कुल वैसा ही जैसा लोजपा में हुआ था। रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके बेटे चिराग पासवान ने पार्टी संभाली थी। एक दिन अचानक उनके चाचा पशुपति पारस पार्टी के छह में से पांच सांसदों को लेकर अलग हो गए। उन्हें आनन-फानन में असली लोक जनशक्ति पार्टी की मान्यता मिल गई। यह अलग बात है कि चुनाव चिन्ह उनको नहीं मिला लेकिन पार्टी का नाम उनके पास रह गया और उस गुट के नेता पशुपति पारस केंद्र में मंत्री हो गए। अकेले बचे चिराग पासवान को लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास का नाम मिला और हेलीकॉप्टर चुनाव चिन्ह। पार्टी के छह में से पांच सांसद अलग हो गए लेकिन पार्टी का पूरा संगठन चिराग के साथ रहा।
ठीक यहीं कहानी महाराष्ट्र में दोहराई जा रही है। बाल ठाकरे के बाद पार्टी की कमान संभाल रहे उद्धव ठाकरे शिव सेना को अपने हिसाब से संभाल रहे थे। अचानक एक दिन पार्टी के नंबर दो नेता एकनाथ शिंदे ने बगावत की और दो-तिहाई से ज्यादा विधायक उनके साथ चले गए। पार्टी के आधे से ज्यादा लोकसभा सांसद भी अलग होने को तैयार हैं। लेकिन पार्टी का लगभग पूरा संगठन उद्धव ठाकरे के साथ है। तभी ऐसा लग रहा है कि पार्टी के कब्जे को लेकर भी बिहार वाली कहानी दोहराई जाएगी। हो सकता है कि बागी गुट को शिव सेना का नाम और चुनाव चिन्ह भी मिल जाए या कम से कम नाम मिल जाए। उद्धव ठाकरे को नया नाम और नया चुनाव चिन्ह मिल सकता है।