महाराष्ट्र में भाजपा ने कमाल किया। उसने अंधेरी ईस्ट विधानसभा सीट के उपचुनाव में अपना उम्मीदवार हटा लिया। अपने उम्मीदवार मुर्जी पटेल का नामांकन वापस कराने के बाद भाजपा की ओर से कहा गया कि यह महाराष्ट्र की राजनीति की परंपरा के अनुकूल है। यहीं बात महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे ने कही। शिव सेना के एकनाथ शिंदे गुट के नेता प्रताप सरनाइक ने भी यहीं बात कही और एनसीपी के नेताओं ने भी इसे दोहराया। सवाल है कि क्या सचमुच महाराष्ट्र में यह परंपरा है कि किसी विधायक या सांसद के निधन के बाद उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ उम्मीदवार नहीं दिया जाता है? ऐसा कतई नहीं है।
देश के बाकी राज्यों की तरह महाराष्ट्र में भी विधायकों और सांसदों के निधन से खाली हुई सीट पर उपचुनाव होते रहे हैं और सभी बड़ी पार्टियां पूरी ताकत लगा कर लड़ती रही हैं। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, शिव सेना या एनसीपी कोई अपना उम्मीदवार वापस नहीं लेता है। हाल के दिनों में यह पहली बार हुआ है कि महाराष्ट्र की परंपरा का झूठा हवाला देकर भाजपा ने अपना उम्मीवार चुनाव मैदान से हटाया है। उपचुनाव में किस तरह की परंपरा रही है इसे पिछले साल हुए दो उपचुनावों से समझा जा सकता है।
पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में नांदेड़ जिले की देलगुर-बिलोली विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था। इस उपचुनाव की जरूरत इसलिए पड़ी थी क्योंकि कांग्रेस के विधायक रावसाहेब अंतापुरकर का दुखद निधन कोरोना की वजह से हो गया था। कांग्रेस, शिव सेना और एनसीपी के गठबंधन की ओर से रावसाहेब अंतापुरकर के बेटे जीतेश अंतापुरकर को टिकट दिया गया था, जिनके खिलाफ भाजपा ने सुभाष सबने को उम्मीदवार बनाया था। तब विपक्ष के नेता देवेंद्र फड़नवीस ने खूब मेहनत करके प्रचार किया था, हालांकि उनका उम्मीदवार हार गया था। इससे पहले मई में पंढरपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था। एनसीपी के विधायक भारत भलके के कोरोना से निधन के बाद यह उपचुनाव हुआ था। एनसीपी ने भारत भलके के बेटे भगीरथ भलके को उम्मीदवार बनाया था। उनके खिलाफ भाजपा ने समाधान औताडे को उम्मीदवार बनाया और फड़नवीस सहित पूरी भाजपा ने जीतोड़ मेहनत करके दिवंगत विधायक के बेटे को हरा दिया।
भाजपा ही क्यों महाराष्ट्र की दूसरी पार्टियां भी दिवंगत विधायकों या सांसदों के परिवार के सदस्यों के खिलाफ चुनाव लड़ती रही हैं। इसकी सबसे बड़ी मिसाल अक्टूबर 2014 में बीड लोकसभा सीट पर हुआ उपचुनाव है। केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे के दुखद निधन के बाद उनकी बेटी प्रीतम मुंडे इस सीट से चुनाव लड़ी थीं और कांग्रेस ने अशोकराव शंकरराव पाटिल को उम्मीदवार बनाया था। इस चुनाव में प्रीतम मुंडे करीब सात लाख वोट के रिकॉर्ड अंतर से जीती थीं। सो, दिवंगत नेताओं के परिजनों को आसानी से जीतने देने की कोई परंपरा महाराष्ट्र में नहीं रही है। भाजपा के उम्मीदवार हटाने का कारण दूसरा है।
Tags :bjp Uddhav Thackeray