राहुल गांधी ने कहा कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले मायावती को संदेश भेजा था कि वे कांग्रेस से गठबंधन करके लड़ें और मुख्यमंत्री का दावेदार बनें पर मायावती ने इसका जवाब नहीं दिया। इसका खंडन और विरोध करते हुए बाद में मायावती ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर बहुत तीखा हमला किया। राहुल गांधी ने बसपा से तालमेल के प्रस्ताव की बात पहली बार कही है। लेकिन उससे पहले कई बार इस तरह के प्रयास हुए हैं लेकिन मायावती कभी भी कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने को तैयार नहीं होती हैं। वे अपनी धुरी विरोधी सपा के साथ तालमेल कर लेती हैं और भाजपा के साथ भी परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से तालमेल के लिए राजी हो जाती हैं। कांग्रेस को चुनाव बाद समर्थन देती हैं परंतु चुनाव से पहले कांग्रेस से तालमेल के हर प्रस्ताव को खारिज कर देती हैं।
Read also रामनवमी या रावणनवमी ?
ध्यान रहे 2017 के विधानसभा चुनाव के समय भी यह प्रयास हुआ था कि सपा, बसपा, कांग्रेस और रालोद तीनों मिल कर लड़ें। लेकिन मायावती राजी नहीं हुईं। उसके बाद 2019 को लोकसभा चुनाव में उन्होंने सपा से तालमेल किया लेकिन यह सुनिश्चित किया कि अखिलेश यादव कांग्रेस को इस गठबंधन में नहीं रख सकें। सवाल है कि ऐसा क्यों है कि मायावती कांग्रेस से इतनी दूरी बनाए रखती हैं? इसका कारण यह है कि मायावती को यह चिंता रहती है कि कहीं उनके तालमेल करने से एक बार दलित वोट कांग्रेस के साथ गया तो वह हमेशा के लिए कांग्रेस के पास जा सकता है। ध्यान रहे कांशीराम और मायावती के उभार से पहले दलित एकमुश्त कांग्रेस के लिए वोट करता था। कांग्रेस के पास दलित, ब्राह्मण और मुसलमान का मजबूत जातीय समीकरण था। मायावती को भरोसा है कि उनका दलित वोट पूरी तरह से भाजपा के साथ नहीं जाएगा और सपा के साथ तो कतई नहीं जाएगा। लेकिन वह कांग्रेस के साथ जा सकता है। इसलिए वे हर पार्टी से तालमेल करती हैं, कांग्रेस को छोड़ कर।