पिछले आठ साल में हिंदी फिल्मों के इस डायलॉग का स्वरूप बदल गया है। अब हार कर जीतने वाले को बाजीगर नहीं भाजपा कहा जाता है। दिल्ली नगर निगम का चुनाव बुरी तरह से हारने के बाद भी भाजपा जीतने के प्रयास में लगी है। भाजपा ने 2017 के चुनाव में 181 सीटें जीती थीं, जो 2022 में घट कर 104 रह गईं और 2017 में 49 सीट जीतने वाली आम आदमी पार्टी ने 2022 में 135 सीटें जीतीं। यानी दिल्ली के मतदाताओं ने बहुत साफ बहुमत दिया, जैसा पिछली बार दिया था पर पहले दिन से भाजपा के नेता यह दावा कर रहे हैं कि भले आप जीती है लेकिन मेयर तो भाजपा का ही बनेगा!
बुरी तरह से हारने के बाद भी कैसे मेयर भाजपा का बने इसका प्रयास पहले दिन से चल रहा है और यहीं कारण है कि सात दिसंबर को नतीजे आने के बाद एक महीना लग गया मेयर के चुनाव की तारीख तय करने में और उसके बाद भी छह जनवरी को जब सारे नव निर्वाचित पार्षद मेयर का चुनाव करने के लिए इकट्ठा हुए तो ऐसी स्थितियां पैदा की गईं ताकि चुनाव न हो सके। उससे पहले उप राज्यपाल ने जो कुछ भी किया वह सब इसी का प्रयास था कि किसी तरह चुनाव टले। ऐसा लग रहा है कि अपना मेयर बनाने के लिए जो जरूरी संख्या है भाजपा वहां तक नहीं पहुंच पा रही है।
चंडीगढ़ वाला फॉर्मूला यहां काम नहीं कर पा रहा है। चंडीगढ़ में नजदीकी मुकाबला था तो भाजपा ने कांग्रेस के एक पार्षद को अपनी पार्टी में मिला कर और आप का एक वोट अवैध करा कर अपना मेयर बना लिया था। लेकिन दिल्ली में अंतर ज्यादा सीट का है। आम आदमी पार्टी के पास बहुमत से कम से कम 10 वोट ज्यादा हैं, जबकि भाजपा के पास बहुमत से कम से कम 20 वोट कम हैं। कांग्रेस के नौ वोट में तोड़ फोड़ से भी बात नहीं बननी है। तभी विवाद पैदा करना और चुनाव टालना ही एकमात्र रास्ता है।
छह दिसंबर को मेयर के चुनाव के पहले से ही यह काम चल रहा था। सरकार की सहमति से 10 एल्डरमैन यानी मनोनीत पार्षद नियुक्त करने की बजाय उप राज्यपाल ने अपनी मर्जी से यानी भाजपा की सिफारिश पर 10 एल्डरमैन नियुक्त कर दिए। इसी तरह सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को पीठासीन अधिकारी बनाने की बजाय भाजपा की मेयर रही सत्या शर्मा को पीठासीन अधिकारी बना दिया। उन्होंने आसन पर बैठते ही अपना खेल शुरू कर दिया। एल्डरमैन मनोनीत पार्षद होते हैं, उनकी शपथ आखिर में होती है और उनको वोट डालने का अधिकार नहीं होता है। लेकिन भाजपा की पीठासीन अधिकारी ने सबसे पहले उनकी शपथ करानी शुरू कर दी। जब आप के पार्षदों ने इसका विरोध किया तो सदन में मारपीट शुरू हो गई और चुनाव टाल दिया गया। अब देखना है कि कब तक भाजपा अपना मेयर बनाने लायक पार्षदों का इंतजाम कर लेती है।