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एनपीपी का विरोध भाजपा के कितना काम आएगा?

भारतीय जनता पार्टी मेघालय में कमाल की राजनीति कर रही है। पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता अमित शाह ने मेघालय में प्रचार की कमान संभाली है और वे लगातार अपनी पुरानी सहयोगी एनपीपी को निशाना बना रहे हैं। सोचें, भाजपा अपने दो विधायकों के साथ लगातार पांच साल तक एनपीपी का समर्थन कर रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में एनपीपी को बहुमत नहीं मिला था। वह सबसे बड़ी पार्टी बनी थी लेकिन बहुमत से बहुत दूर थी। उसे 60 सदस्यों की विधानसभा में सिर्फ 20 सीटें मिली थीं और उसने यूडीपी के आठ, पीडीएफ के दो और भाजपा के दो विधायकों की मदद से सरकार बनाई थी। करीब पांच साल तक भाजपा और एनपीपी साथ रहे। मेघालय से बाहर अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में भी एनपीपी और भाजपा एक साथ रहे।

चुनाव से ठीक पहले दोनों पार्टियों का तालमेल खत्म हुआ, जब एनपीपी के मुख्यमंत्री कोनरेड संगमा ने भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के खिलाफ कार्रवाई की। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष को वेश्यालय चलाने और हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उसके बाद दोनों पार्टियों ने अलग लड़ने का ऐलान किया। भाजपा सभी सीटों पर लड़ रही है और अमित शाह कोनरेड संगमा की सरकार को देश की सबसे भ्रष्ट सरकारों में से एक बता रहे हैं। सोचें, उनकी पार्टी जिस सरकार के साथ पांच साल रही उसको सबसे भ्रष्ट बताने का दांव कितना कामयाब होगा? शाह यह भी कह रहे हैं कि कोनरेड संगमा वंशवादी राजनीति कर रहे हैं। भाजपा ने पांच साल तक उनकी इसी राजनीति को समर्थन किया है। इतना ही नहीं भाजपा ने कोनरेड के पिता दिवंगत पीए संगमा को 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया था। सो, कोनरेड को वंशवादी बताने का भाजपा का दांव भी कितना कामयाब होगा, कहा नहीं जा सकता है।

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