दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहले दिन से चाहते थे कि प्रवासी मजदूर दिल्ली से चले जाएं। उनको पता था कि दिल्ली की आधी आबादी जिन बस्तियों में और जिस हालत में रहती है अगर उसे वहां से नहीं निकाला गया तो कोरोना वायरस का भारी विस्फोट होगा। पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी चुनावी चिंता में मजदूरों को आने नहीं दे रहे थे। उन्होंने एक महीने से ज्यादा समय तक इस बात का विरोध किया कि मजदूर नहीं लौटें। पर अंत में उनकी भी हालत सौ जूते और सौ प्याज खाने वाली हो गई। उन्हें अब मजबूरी में मजदूरों को बुलाना पड़ रहा है। इस प्रक्रिया में करीब डेढ़ महीने की जो देरी हुई है उससे हालात बिगड़ गए हैं और यह दिल्ली व बिहार दोनों के लिए चिंता की बात है।
पिछले 15 दिन में देश के अलग अलग हिस्सों से बिहार पहुंच रहे मजदूरों की कोरोना जांच से हैरान करने वाला आंकड़ा जाहिर हुआ है। देश भर में आए मजदूरों में आठ फीसदी वायरस से संक्रमित मिले हैं। पर हैरान करने वाली बात है कि जो मजदूर दिल्ली से लौटे हैं उनमें 26 फीसदी मजदूर संक्रमित मिले हैं। यानी दिल्ली से लौटा चार में से एक व्यक्ति कोरोना से संक्रमित है। सोचें, यह कितनी भयावह बात है। बिहार से ज्यादा दिल्ली सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए और बिहार से इन मजदूरों के बारे में सूचना मंगा कर तत्काल उनके सारे संपर्कों को खोजना चाहिए और उनकी जांच करानी चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि दिल्ली से बिहार जाने से पहले उनके संपर्क रहे लोगों में बड़ी संख्या संक्रमितों की हो सकती है। बिहार में तो संक्रमित फिर भी पहचान में आ गए पर अगर उनके संपर्क वालों को दिल्ली में नहीं खोजा गया तो स्थिति भयावह हो सकती है।