कर्नाक विधानसभा चुनाव में हर दिन एक नया टर्न एंड ट्विस्ट देखने को मिल रहा है। चुनाव से ऐन पहले राज्य में दूध की लड़ाई शुरू हो गई है। देश के सबसे बड़े मिल्क ब्रांड अमूल ने कर्नाटक में एकछत्र राज कर रहे ब्रांड नंदिनी को चुनौती दी है। पहली नजर में यह दो उपभोक्ता ब्रांड की आपसी लड़ाई दिखती है। लेकिन ऐसा नहीं है और ऐसा नहीं होने के कारण दोनों ब्रांड का उत्पादन करने वाली कंपनियों के नाम में छिपा है। नंदिनी ब्रांड का दूध कर्नाटक मिल्क फेडरेशन की ओर से तैयार किया जाता है तो अमूल ब्रांड गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन द्वारा तैयार किया जाता है। तभी कर्नाटक के बाजार में अमूल की एंट्री को गुजरात से जोड़ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को निशाना बनाया जा रहा है। कांग्रेस और जेडीएस का आरोप है कि यह कर्नाटक के लोकल ब्रांड को खत्म करने की गुजरात की साजिश है।
तभी यह बात समझ से परे है कि अमूल ने ऐन चुनाव से पहले कर्नाटक के बाजार में उतरने का फैसला क्यों किया? वह चुनाव बाद उतरती तो इतना विवाद नहीं होता। ध्यान रहे नंदिनी ब्रांड के नियंत्रण वाला मुख्य इलाका पुराने मैसुरू का है, जहां वोक्कालिगा आबादी ज्यादा है और यह कांग्रेस, जेडीएस के असर वाला इलाका है। ध्यान रहे वोक्कालिगा वोट में भाजपा बहुत मेहनत कर रही थी। तो क्या अब यह माना जाए कि उसने इस वोट की आस छोड़ दी है और इसके अलावा अपना दूसरा वोट कंसोलेटिड करने की कोशिश कर रही है? बहरहाल, राजनीतिक कारण चाहे जो हो लेकिन इतना तय माना जा रहा है कि कर्नाटक में चल रही मौजूदा व्यवस्था जारी रहती है तो नंदिनी के सामने कोई चुनौती नहीं होगी।
असल में राज्य सरकार कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को प्रति लीटर दूध पर छह रुपए देती है, जिसकी वजह से नंदिनी का दूध बहुत सस्ता होता है। अमूल और नंदिनी के दूध की कीमत में औसतन 10 रुपए प्रति लीटर तक का फर्क है। इसलिए अमूल के लिए कोई संभावना नहीं दिख रही है। इसके बावजूद चुनाव के ऐन पहले उसके कर्नाटक के बाजार में दस्तक देने का कारण समझ में नहीं आ रहा है।