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भाजपा के सहयोगी कर रहे हैं इंतजार

भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी सरकार में शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं। सबकी बेचैनी बढ़ रही है। सरकार में शामिल एक सहयोगी जनता दल यू से तालमेल खत्म हो गया है और तभी से दूसरे सहयोगियों का इंतजार चल रहा है। भाजपा की दो सहयोगी पार्टियां सरकार में शामिल होने की आस लगाए बैठी हैं। बिहार में चिराग पासवान पिछले कुछ दिनों से भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। उपचुनावों में उन्होंने भाजपा की मदद की और उम्मीद कर रहे हैं कि उनको सरकार में जगह मिलेगी। हालांकि वे अपनी पार्टी के इकलौते सांसद हैं। बाकी पांच सांसद उनके चाचा पशुपति पारस के साथ हैं और इस आधार पर पारस केंद्र सरकार में मंत्री हैं। लेकिन जदयू के एनडीए से अलग होने के बाद से ही कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जब भी विस्तार होगा, तो चिराग पासवान को जगह मिलेगी।

दूसरी सहयोगी पार्टी शिव सेना का एकनाथ शिंदे गुट है। मंत्री बनने की आस में उनके कई सांसद इंतजार कर रहे हैं। ध्यान रहे शिव सेना के टूटने के बाद 12 सांसद शिंदे गुट में चले गए हैं। पिछले छह महीने से वे इस इंतजार में हैं कि सरकार में फेरबदल हो तो वे मंत्रिमंडल में शामिल हों। देरी होने से उनमें से कई नेताओं का धीरज जवाब दे रहा है। यहीं स्थिति प्रदेश में भी है। अभी तक राज्य में मंत्रिमंडल का गठन पूरा नहीं हुआ है। करीब आधे पद खाली रखे गए हैं। पहले कहा गया था कि पिछले साल के अंत तक नगर निगम का चुनाव हो जाएगा और उसके बाद नए मंत्री बनाए जाएंगे लेकिन निगम का चुनाव भी टलता जा रहा है और राज्य में मंत्री बनने का इंतजार कर रहे शिंदे गुट के विधायकों की बेचैनी भी बढ़ती जा रही है।

बहरहाल, तीसरी पार्टी भाजपा की संभावित सहयोगी है। उसकी पुरानी सहयोगी अकाली दल से वापस तालमेल की बातचीत हो रही है। बताया जा रहा है कि पिछले दिनों अकाली दल के नेता सुखबीर बादल की मुलाकात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से हुई थी। हालांकि दोनों के बीच क्या बात हुई यह सामने नहीं आया लेकिन दोनों पार्टियों में सद्भाव बना है। संसद के पिछले सत्र में हरसिमरत कौर बादल ने जिस अंदाज में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को निशाना बनाया और उस समय सदन में मौजूद अमित शाह जितने खुश हुए वह भी दोनों पार्टियों में बढ़ती नजदीकी का संकेत थे। ध्यान रहे अकाली दल 2020 के नवंबर तक केंद्र सरकार में शामिल था और हरसिमरत कौर बादल मंत्री थीं। लेकिन किसान आंदोलन के बाद मजबूरी में उनको भाजपा का साथ छोड़ना पड़ा। उसके बाद 2022 में दोनों पार्टियां अलग लड़ीं और दोनों को अपनी ताकत का अंदाजा हो गया। सो, कहा जा रहा है कि अकाली दल की एनडीए और मोदी सरकार में वापसी हो सकती है।

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