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दिल्ली में एलजी तब क्या राजनेता?

ByNI Political,
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दिल्ली में एलजी तब क्या राजनेता?
दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल का कार्यकाल वैसे तो इस साल दिसंबर तक है, लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि उनको पहले ही हटाया जा सकता है, जैसे पुड्डुचेरी में किरण बेदी को कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटा दिया गया। उनकी जगह किसी राजनीतिक व्यक्ति को उप राज्यपाल बनाने पर विचार हो रहा है। आमतौर पर राज्यपाल या उप राज्यपाल का कार्यकाल पांच साल का होता है और उससे पहले अगर उसे हटाया जाता है तो उसका तबादला होता है। जैसे सत्यपाल मलिक का पांच साल के कार्यकाल में तीन बार हो चुका है। लेकिन अगर सरकार चाहे तो सीधे हटा भी सकती है, जैसे किरण बेदी को पुड्डुचेरी के उप राज्यपाल पद से हटा दिया गया। उनका करीब चार महीने का कार्यकाल बचा हुआ था। बहरहाल, जानकार सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार किसी राजनीतिक व्यक्ति को दिल्ली का उप राज्यपाल बना सकती है। आमतौर पर उप राज्यपाल रिटायर अधिकारियों को ही बनाया जाता है। इस समय एक जम्मू कश्मीर और पुड्डुचेरी को छोड़ कर हर केंद्र शासित प्रदेश का उप राज्यपाल या प्रशासक कोई न कोई रिटायर अधिकारी ही है। जम्मू कश्मीर में भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता मनोज सिन्हा को उप राज्यपाल बनाया है, जबकि पुड्डुचेरी में किरण बेदी को हटाए जाने के बाद तेलंगाना की राज्यपाल तमिलसाई सौंदर्यराजन को वहां का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। गौरतलब है कि दिल्ली के प्रशासन को लेकर केंद्र सरकार ने एक नया संशोधन विधेयक संसद में पेश किया है, जिसे लोकसभा ने पास कर दिया है। इसके कानून बनने के बाद दिल्ली के उप राज्यपाल के पास मुख्यमंत्रियों वाले अधिकार आ जाएंगे। यानी दिल्ली का उप राज्यपाल ही दिल्ली सरकार या मुख्यमंत्री होगा। तभी कहा जा रहा है कि कानून बनने के बाद केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर की तर्ज पर अपने किसी पुराने नेता को दिल्ली का उप राज्यपाल नियुक्त करेगी, जो दिल्ली सरकार चलाएगा। हालांकि हाल ही में प्रधानमंत्री के प्रमुख सलाहकार पद से इस्तीफा देने वाले पीके सिन्हा को भी उप राज्यपाल बनाने की चर्चा थी लेकिन हो सकता है कि उन्हें दूसरी जगह भेजा जाए। असल में रिटायर अधिकारी के उप राज्यपाल रखने का कोई राजनीतिक लाभ भाजपा को नहीं मिल रहा था। पिछले करीब सात साल से केंद्र के नियुक्त किए उप राज्यपाल और दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के बीच टकराव ही चल रहा है लेकिन उसका फायदा भाजपा को नहीं हो रहा है। रिटायर अधिकारी के जरिए भाजपा कोई राजनीतिक मैसेज नहीं दे पा रही है और उलटे आम आदमी पार्टी और उसके नेता केंद्र के साथ टकराव का प्रचार करके फायदा उठा ले रहे हैं। इसलिए संभावना जताई जा रही है कि कोई जाना-पहचान राजनीतिक चेहरा दिल्ली की कमान संभालेगा। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में कह चुके हैं कि सरकारी बाबू है तो क्या सब काम वहीं करेगा। बहरहाल, यह देखना है कि अनिल बैजल को कितना पहले हटाया जाता है और उन्हें किरण बेदी की तरह हटा दिया जाता है या तबादला होता है या वे दिसंबर में जाएंगे उसके बाद ही दिल्ली में नई नियुक्ति होती है?
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