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क्या सचमुच पेट्रोल-डीजल जीएसटी में आएंगे?

ByNI Political,
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क्या सचमुच पेट्रोल-डीजल जीएसटी में आएंगे?
वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी कौंसिल की 45वीं बैठक से पहले एक बड़ा शिगूफा छोड़ा गया है। कोरोना महामारी शुरू होने के बाद पहली बार जीएसटी कौंसिल की फिजिकल यानी सदस्यों की आमने-सामने की बैठक 17 सितंबर को लखनऊ में होगी। इस बैठक से पहले सरकार की ओर से यह प्रायोजित खबर मीडिया में चलवाई गई है कि मंत्री समूह पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने का प्रस्ताव जीएसटी कौंसिल में रखेगा। इस प्रस्ताव को ‘एक देश, एक दाम’ का नाम दिया गया है। इसके तहत पेट्रोल, डीजल से लेकर विमानों में भरे जाने वाले ईंधन तक को जीएसटी के दायरे में लाने की बात है। हालांकि साथ ही यह भी खबर है कि जीएसटी कौंसिल इसके पक्ष में नहीं है। petrol and diesel gst सवाल है कि क्या सचमुच सरकार ऐसा कर सकती है या यह सिर्फ दिखावा है? पहली नजर में तो ऐसा सोचने का भी कोई कारण नजर नहीं आता है। आखिर जिस सरकार ने पिछले सात साल से कच्चे तेल की कीमतों में हुई भारी कमी का कोई लाभ आम लोगों को नहीं दिया और कच्चा तेल सस्ता होने के बावजूद पेट्रोल-डीजल के दाम सौ रुपए लीटर से ऊपर जाने दिया, उसका अचानक ऐसा हृदय परिवर्तन कैसे हो सकता है कि वह पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में ला दे? इन उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने का मतलब है कि अगर इसे 28 फीसदी के सबसे ऊपरी स्लैब में रखें और कुछ उपकर भी लगाएं तब भी इसकी कीमत में 30 से 40 रुपए प्रति लीटर की या उससे ज्यादा की भी कमी आ सकती है। nirmala sitharaman Read also अमीरी और गरीबी की खाई सोचें, जो सरकार 30 से 40 पैसे प्रति लीटर की कटौती करने में हिचक रही है वह एक झटके में 40 रुपए लीटर कीमत कम करने को कैसे तैयार हो सकती है? सो, यह तो भूल जाना चाहिए कि सरकार मौजूदा व्यवस्था में पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाएगी। हां, यह संभव है कि जीएसटी के स्लैब बदले जाएं और उपकर की ऐसी व्यवस्था हो कि पेट्रोलियम उत्पादों को इसके दायरे में लाने पर भी पांच-सात रुपए प्रति लीटर से ज्यादा की कमी नहीं हो, तब बात अलग है। यह भी संभव है कि मंत्री समूह की ओर से प्रस्ताव रखवाया जाए और कौंसिल उसे खारिज कर दे। क्योंकि राज्यों के लिए भी राजस्व का यहीं सबसे बड़ा स्रोत है। ऐसे में बढ़ती कीमतों का ठीकरा राज्यों पर भी फोड़ना आसान हो जाएगा। ध्यान रहे पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत स्वाभाविक रूप से नहीं बढ़ी है। केंद्र और राज्यों ने इस पर बेतहाशा टैक्स लगा कर कीमतें बढ़ाई हैं। एक लीटर पेट्रोल की कीमत में 32 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार के टैक्स का होता है। एक लीटर डीजल की कीमत में केंद्रीय कर का हिस्सा 35 फीसदी तक है। पिछले 2019-20 के वित्त वर्ष में पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स से केंद्र और राज्यों को साढ़े पांच लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिला था। पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में यह और बढ़ा होगा क्योंकि कोरोना की आपदा को ही अवसर बना कर केंद्र सरकार ने उत्पाद शुल्क में बड़ी बढ़ोतरी की है। सो, पेट्रोल-डीजल पर होने वाली कमाई केंद्र सरकार इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली है। छोड़ना भी होगा तो उसके लिए सही समय 2024 के लोकसभा चुनाव के समय आएगा।
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