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वरुण की राजनीति उन्हें कहां ले जाएगी?

ByNI Political,
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वरुण की राजनीति उन्हें कहां ले जाएगी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में युवा नेता के नाम पर जितने भी लोग प्रमोट किए गए हैं या मंत्री बनाए गए हैं, बिना शक कहा जा सकता है कि उनमें से कोई भी वरुण गांधी की तरह न तो लोकप्रिय है और न काबिल। फिर भी वरुण हाशिए में हैं और अपने समय का इंतजार कर रहे हैं। उनको राजनाथ सिंह ने अध्यक्ष रहते पार्टी का महासचिव बनाया था और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य की जिम्मेदारी दी थी। वरुण 2013 में 33 साल के थे और भाजपा के संभवतः सबसे युवा महासचिव थे। लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भाजपा की कमान संभालने के बाद से उनको न तो संगठन में जगह मिली है और न तीन बार लगातार लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद सरकार में जगह मिली है। वे 2009 में पीलीभीत से, 2014 में सुल्तानपुर और फिर 2019 में पीलीभीत से चुनाव जीते हैं। MP varun gandhi bjp अब तक वरुण गांधी पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ता की तरह सिर्फ सरकार के कामकाज की तारीफ करते थे लेकिन अब उन्होंने तेवर बदले हैं। सात जुलाई को नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट में फेरबदल की थी, तब कहा जा रहा था कि वरुण भी मंत्री बन सकते हैं। आखिर इस बार मोदी ने उनकी मां मेनका गांधी को भी मंत्रिमंडल में नहीं रखा है। इस बार जब उनको मौका नहीं मिला तो उन्होंने ‘दिल की आवाज’ पर राजनीति शुरू कर दी। सबसे पहले उन्होंने पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में हुई किसानों की महापंचायत की फोटो शेयर की और किसानों का समर्थन करते हुए उन्हें अपना बताया और उनकी बात सुनने की अपील की। यह पार्टी से अलग लाइन थी। varun gandhi wrote letter

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पिछले दिनों उन्होंने गन्ने की कीमत को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखी। उन्होंने कीमत बढ़ा कर चार सौ रुपए क्विटंल करने की अपील की। इसके बाद लखीमपुर खीरी की घटना पर उन्होंने बहुत सख्त स्टैंड लिया और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इसकी जांच कराने की मांग की। हो सकता है कि यह स्टैंड पीलीभीत की बड़ी सिख आबादी को खुश करने के लिहाज से लिया गया हो पर अब वे पार्टी से अलग राजनीति कर रहे हैं। यह राजनीति उन्हें कहां ले जाएगी? क्या वे बागी तेवर के साथ राजनीति करते हुए पार्टी में रह सकते हैं? इसमें संदेह नहीं है कि दूसरी किसी पार्टी में उनके लिए कोई बड़ी संभावना नहीं है। लेकिन भाजपा में रहते हुए अगर वे बागी तेवर के साथ राजनीति करते रहते हैं तो जब भी केंद्र और राज्य में पार्टी का निजाम बदलेगा तो उनके लिए बड़ी संभावना होगी। वे शीर्ष नेता भी बन सकते हैं।
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