कहा जाता है कि एक ही गलती अगर बार बार हो तो उसे गलती नहीं कहते हैं। वह या तो साजिश होती है या मूर्खता। सो, यह नहीं कहा जा सकता है कि मंगलवार को लॉकडाउन 2.0 की घोषणा के बाद मुंबई में या सूरत में जो हुआ वह किसी की गलती है। इसमें गलती निकालने वाली कोई बात नहीं है। यह किसी की साजिश है या शासन-प्रशासन की मूर्खता है, जो उसने दिल्ली-एनसीआर के अनुभव से कुछ नहीं सीखा था। लॉकडाउन की पॉलिसी बनाते हुए महानगरों और बड़े शहरों में बसे प्रवासियों की पूरी तरह से अनदेखी कर दी गई, यह उसका नतीजा है।
सबको याद होगा कि 24 मार्च को रात आठ बजे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान किया उसके अगले दिन से हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने ठिकानों से निकले और अपने गृह राज्य की ओर प्रस्थान कर गए। दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर हजारों की संख्या में लोग जमा हो गए। हजारों लोग सिर पर पोटली रखे, बच्चों-महिलाओं का हाथ पकड़े पैदल ही चलने लगे। उस त्रासद तस्वीर पर भी खूब राजनीति हुई। पक्ष-विपक्ष की पार्टियों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाए और किसी तरह से चार-पांच दिन में यह मसला सुलझा। लोगों को पकड़ कर शिविरों में रखा गया या बसों में भर कर उनके घर भेजा गया। यानी घोषणा के अगले कई दिन तक इन इलाकों में लॉकडाउन या तो स्थगित रहा या उसका मकसद फेल हो गया।
तब जानकारों ने भी कहा कि सरकार ने झुग्गियों और कच्ची बस्तियों में रहने वाले प्रवासियों के बारे में विचार नहीं किया था। लॉकडाउन की घोषणा से पहले उनके बारे में सोचा जाना चाहिए था। इसके बचाव में कहा जा सकता है कि उस समय मजबूरी थी और तत्काल घोषणा करनी थी, इसलिए उनके बारे में विचार नहीं हो सका। पर सवाल है कि उसे बाद 21 दिन में तो विचार हो सकता था? सोचा जा सकता था कि लॉकडाउन बढ़ाया जाएगा तो उनका क्या होगा, जो झुग्गियों में रहते हैं? यह सोचा जाना चाहिए था कि 21 दिन के बाद यानी 14 अप्रैल कोगरमी 40 डिग्री से ऊपर होगी, लोगों के पास रोजगार नहीं होगा, जमा किए गए पैसे खत्म हो रहे होंगे और कोरोना का कहर बढ़ रहा होगा तो ये लोग क्या सोच रहे होंगे और अगर लॉकडाउन बढ़ा तो उस पर ये कैसे प्रतिक्रिया देंगे?
महाराष्ट्र कोरोना का एपिसेंटर है और उसमें भी मुंबई में सबसे ज्यादा मामले हैं, सबसे ज्यादा मौतें हैं। एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी धारावी मुंबई में है, जिसमें सात लोगो की मौत हो चुकी है। फिर क्या सरकार को इस पर विचार नहीं करना चाहिए था कि इन झुग्गियों में रहने वालों को निकाल कर कहीं पहुंचाया जाए? क्या लॉकडाउन की घोषणा से पहले केंद्र सरकार को भी इस बारे में नहीं विचार करना चाहिए था? लेकिन किसी ने विचार नहीं किया। वहीं गलती दोहराई गई, जो पहले हुई थी और नतीजा यह निकला कि मुंबई और गुजरात के सूरत में हजारों लोग सड़कों पर निकल गए। न तो मुंबई में किसी ने पहले से तैयारी की थी और सूरत में कोई आकलन किया गया था।
मुंबई की घटना मूर्खता है या साजिश!
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