अब अगले दो साल का एजेंडा तय हो गया है। जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया तो एक साल तक पूरे देश में इसी की चर्चा चलती रही और चौतरफा अफरातफरी मची रही उसी तरह अब अगले दो साल तक पूरे देश में नागरिकता कानून, जनगणना, जनसंख्या रजिस्टर और नागरिक रजिस्टर का मुद्दा चलता रहेगा। राजनीतिक नफा-नुकसान एक तरफ है। अभी नहीं कहा जा सकता है कि इसका फायदा किसको होगा और किसको नुकसान होगा पर इसमें संदेह नहीं है कि पूरा देश इसी में उलझा रहेगा। ध्यान रहे नोटबंदी के बाद पूरे देश में जिस किस्म की अफरातफरी थी उसमें सबको लग रहा था कि भाजपा उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनाव में खराब प्रदर्शन करेगी पर वह उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में चुनाव जीत गई।
उसी तरह अब 2022 के मार्च में होने वाले चुनाव तक जनगणना, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का मुद्दा चलेगा। अगले साल अप्रैल से लेकर सितंबर तक जनसंख्या रजिस्टर पर काम होगा। उसके बाद 2021 की जनगणना चलेगी। ये दोनों काम पूरे होंगे तो नागरिक रजिस्टर का काम होगा। माना जा रहा है कि सरकार इन दोनों के आंकड़ों के आधार पर आगे का रास्ता बनाएगी। अभी भले सरकार कह रही है कि एनपीआर और एनआरसी का आपस में कोई लेना देना नहीं है पर हकीकत यह है कि सरकार खुद कई बार कह चुकी है कि एनआरसी का पहला कदम एनपीआर है। सो, तय है कि अगले दो साल से कुछ ज्यादा समय तक देश में इसी पर चर्चा होगी।