यह हैरान करने वाली बात है कि सभी विपक्षी पार्टियों के मुख्यमंत्रियों ने एक साझा बैठक की, उसमें इंजीनियरिंग और मेडिकल में दाखिले के लिए होने वाली जेईई और नीट की परीक्षा को रूकवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला हुआ और छह राज्यों के कैबिनेट मंत्रियों ने याचिका दायर भी कि पर अदालत ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया। छह राज्यों के कैबिनेट मंत्रियों ने 28 अगस्त को पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिस पर चार सितंबर को सुनवाई हुई और उसी दिन इसे खारिज कर दिया गया गया।
चार सितंबर को जिस दिन सुनवाई हुई उस दिन जेईई मेन्स की परीक्षा का चौथा दिन था और तब तक चार लाख के करीब छात्र परीक्षा दे चुके थे। अगर अदालत को याचिका खारिज करनी थी तो इसकी अरजेंसी को समझते हुए 28-29 अगस्त को ही खारिज कर देती। उससे कम से कम लाखों छात्र किसी उम्मीद में तो नहीं रहते। छह राज्यों की पुनर्विचार याचिका अदालत में लंबित रही, छात्र फैसले का इंतजार करते रहे और एक सितंबर से परीक्षा शुरू हो गई। इसके बाद चार सितंबर को अदालत ने याचिका खारिज की।
पुनर्विचार याचिका का क्या मतलब रहा!
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