मानहानि के मामले में कांग्रेस पार्टी की कानूनी टीम की लापरवाही से राहुल गांधी को सजा हुई, सदस्यता गई और बंगला खाली कराने का नोटिस मिला। यह अलग बात है कि कांग्रेस ने इस लापरवाही को अवसर में बदलने की कोशिश की है। फिसल गए तो हर हर गंगे वाले अंदाज में! बताया जा रहा है कि इस वजह से राहुल गांधी अपनी कानूनी टीम और कांग्रेस के वकील नेताओं से नाराज भी बहुत हैं। लेकिन अभी वे कुछ कर नहीं सकते हैं। उनके परिवार के और पार्टी के इतने नेताओं के कानून मामले अदालतों में लंबित हैं और इतने मामले नए होने की संभावना है कि वे चुप बैठे हैं।
राहुल की टीम के एक युवा कांग्रेस नेता का कहना है कि 22 मार्च को सजा होने के तुरंत बाद एक बैठक हुई थी, जिसमें राहुल ने अपनी नाराजगी का इजहार किया था। उसके अगले दिन 23 मार्च को उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई। उसके बाद भी एक बैठक हुई, जिसमें राहुल गांधी शामिल नहीं हुए। लेकिन कानूनी टीम की लापरवाही का मामला उसमें भी उठा। सबसे बड़ी लापरवाही यह बताई जा रही है कि किसी ने मुकदमे का ट्रैक रखने की जरूरत नहीं समझी। जब हाई कोर्ट से मुकदमे पर लगवाई गई रोक हटवाई गई तब भी किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
कांग्रेस के लीगल सेल से जुड़े रहे एक वकील नेता ने ध्यान दिलाया कि जैसा मुकदमा सूरत की कोर्ट में था वैसा ही एक मुकदमा पटना की अदालत में भी है और अब पटना की अदालत ने 12 अप्रैल को राहुल गांधी को समन किया है। उनका कहना था कि कांग्रेस के बड़े बड़े वकील नेताओं को यह बात क्यों नहीं समझ में आई कि एक ही मसले पर अलग अलग अदालतों में मामले दर्ज हैं तो उन्हें एक जगह करने की अपील ऊपर की अदालत में की जाए? अगर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील करके सारे मुकदमे एक अदालत में मंगवाए गए रहते तो उनकी पैरवी बेहतर ढंग से हो पाती है और सबकी नजर उस पर रहती। आखिर पवन खेड़ा पर तीन जगह दर्ज मानहानि के मामले लखनऊ की एक अदालत में ट्रांसफर हो गए हैं तो राहुल के मामले भी हो सकते थे।
इसका मतलब है कि पहले कांग्रेस की कानूनी टीम ने इस पर ध्यान नहीं दिया और जब राहुल को सजा हो गई तो उसका अधिकतम फायदा उठाने का काम शुरू हुआ। इस आधार पर राहुल को शहीद बनाया जाने लगा। कई नेता तो इतने उत्साहित हो गए कि वे राहुल को जेल जाने के फायदे समझाने लगे। वह तो भला हो सोनिया गांधी का, जिन्होंने इस मामले में पहल की और एक निश्चित समय सीमा के भीतर अदालत में अपील करने का फैसला किया। सोनिया ने यह तय कराया कि 10 दिन तक इस पर जो राजनीति करनी है वह कर लीजिए और उसके बाद अपील दाखिल कीजिए।