बिहार में जाति आधारित जनगणना का काम शुरू हो गया है। केंद्र सरकार से मंजूरी नहीं मिलने के बाद राज्य सरकार ने अपने बजट से जाति आधारित जनगणना कराने का फैसला किया है। इसमें जातियों के साथ साथ आर्थिक स्थिति का भी पता लगाया जाएगा। जाति आधारित जनगणना शुरू होने से एक दिन पहले शुक्रवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया कि सिर्फ जातियों की गिनती होगी, उप जातियों को नहीं गिना जाएगा। ऐसा लग रहा है कि जिस तरह से भाजपा को हिंदू समाज के अंदर जातियों के विभाजन की वजह से जाति जनगणना कराने से दिक्कत है वैसे ही नीतीश कुमार को जातियों के उप जातियों के विभाजन की चिंता है।
ध्यान रहे बिहार में अब जाति की राजनीति बहुत निचले स्तर तक चली गई है। अब हर क्षेत्र में एक ही जाति के कई उम्मीदार खड़े होते हैं और फिर उप जातियों के आधार पर वोट मांगा जाता है। खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के क्षेत्र में उनकी अपनी जाति की कम से कम चार बड़ी उप जातियां हैं। एक उप जाति के नीतीश हैं तो दूसरी उप जाति के नेता आरसीपी सिंह हैं, जो कुछ समय पहले तक नीतीश की पार्टी के नंबर दो नेता होते थे और अभी पार्टी से बाहर हो गए हैं। अगर उप जातियों की गिनती होती है तो सत्ता या पार्टियों की शीर्ष पर बैठे कई नेता कम आबादी वाली उप जाति के प्रतिनिधि निकलेंगे और तब दूसरी उप जातियों से उनके खिलाफ आवाज उठ सकती है। तभी बिहार सरकार ने उप जातियों की गिनती नहीं कराने का फैसला किया है। अभी जाति आधारित जनगणना का इतना मकसद है कि अन्य पिछड़ी जातियों की बड़ी संख्या सामने आए, जिससे राजद और जदयू की राजनीतिक जमीन मजबूत हो।