जब भी ऐसा लगता है कि आरक्षण का मुद्दा अब राजनीतिक विमर्श से बाहर है तभी उसका जिन्न बोतल से बाहर आ जाता है। बिहार विधानसभा के 2015 के चुनाव में आरक्षण बड़ा मुद्दा था। फिर कभी मराठा आरक्षण तो कभी जाट आरक्षण को लेकर विवाद चलता रहा और जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सवर्ण आरक्षण की घोषणा की तो इसकी चर्चा हुई। अब एक बार फिर ओबीसी आरक्षण का जिन्न बोतल से बाहर निकला है और महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश दो राज्यों की राजनीति में इससे हलचल मची है। obc reservation maharashtra government
सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ी जातियों यानी ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू करने के फैसले पर रोक लगा दी है। राज्य सरकार ने अध्यादेश के जरिए यह कानून लागू किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया है। इतना ही नहीं सर्वोच्च अदालत ने चुनाव टालने की याचिका भी खारिज कर दी है और कहा कि जिन 27 फीसदी सीटों को ओबीसी सीट बनाया गया था उन्हें सामान्य सीट बना कर चुनाव कराया जाए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार ने चुनाव आयोग से अनुरोध किया है कि वह चुनाव तीन महीने तक टाले।
इस मामले में राज्य की महाविकास अघाड़ी सरकार फंसी हुई दिख रही है पर भाजपा की मुश्किलें भी कम नहीं हैं। भाजपा के नेता सरकार पर इसका ठीकरा फोड़ रहे हैं लेकिन चुनाव टालने के मामले में सरकार के साथ हैं। राज्य में एक समय भाजपा की ओबीसी राजनीति का चेहरा बन कर उभरीं पंकजा मुंडे सरकार पर हमला करते हुए भी चाहती हैं कि चुनाव तीन महीने टाला जाए। ध्यान रहे पार्टी ने उनको किनारे किया हुआ है और वे इस संकट में अपने लिए मौका मान रही हैं। कुछ समय पहले एनसीपी के ओबीसी नेता छगन भुजबल से उनकी मुलाकात भी काफी चर्चा में रही थी। तभी भाजपा नेतृत्व परेशान है और किसी तरह से इस विवाद से निकलने की जुगाड़ में है।
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उधर मध्य प्रदेश में भी बिल्कुल ऐसी ही स्थिति हो गई है। वहां भी सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य सीट बना कर चुनाव कराने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बगैर आरक्षण लागू करने के फैसले को स्वीकार नहीं किया जाएगा। इस फैसले के बाद राज्य की शिवराज सिंह चौहान सरकार की चिंता बढ़ी है तों विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी घिरी है क्योंकि जिस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है वह याचिकाकर्ता कांग्रेस के प्रवक्ता हैं और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा उनके वकील हैं। सो, दो राज्यों में सरकार और विपक्ष दोनों इस विवाद में फंसे हैं।