पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमत पिछले 110 दिन से स्थिर हैं। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले ही कीमतों का बढ़ना रूक गया था और तब से कथित तौर से हर दिन कीमत तय करने वाली पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनियों ने कीमत नहीं बढ़ाई है। नवंबर-दिसंबर में जब कीमतों का बढ़ना रूका था तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम हो रही थी और एक समय यह कम होकर 63 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी। सो, कीमत नहीं बढ़ने का कारण समझ में आ रहा था। अभी इसकी कीमत एक सौ डॉलर प्रति बैरल की ओर बढ़ रही है। यूक्रेन में रूस के सेना भेजने के साथ ही मंगलवार को कच्चे तेल की कीमत 99 डॉलर प्रति बैरल हो गई। इसके बावजूद कीमतें नहीं बढ़ रही हैं।
सोचें, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अब भी यहीं मिथकीय कथा सुना रही हैं कि खुदरा मूल्य पेट्रोलियम कंपनियां तय करेंगी। अगर पेट्रोलियम कंपनियां तय करेंगी तो क्यों नहीं कीमत बढ़ा रही हैं? 63 डॉलर से बढ़ कर कच्चे तेल की कीमत 73 डॉलर हुई थी तो भारत में पेट्रोल की कीमत 120 रुपए लीटर पहुंच गई थी। आज कच्चा तेल 99 डॉलर से ऊपर है और पेट्रोलियम कंपनियां कीमत नहीं बढ़ा रही हैं?
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क्या वित्त मंत्री गारंटी करेंगी कि सात मार्च को चुनाव खत्म होने के बाद भी कंपनियां इसी तरह चुपचाप रहेंगी? कम से कम इतनी गारंटी तो करें कि अगर कच्चे तेल की कीमत 99 डॉलर से घटने लगती है तो कंपनियां खुदरा कीमत नहीं बढ़ाएंगी? सबको पता है कि ऐसा नहीं होगा। पिछले तीन महीने में पेट्रोलियम कंपनियों का मुनाफा जितना कम हुआ है उन सबकी भरपाई सात मार्च के बाद की जाएगी। खुद वित्त मंत्री ने कहा कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से भारत की वित्तीय स्थिरता के लिए चुनौती पैदा हो रही है। इस चुनौती से निपटने के लिए सात मार्च के बाद भारत सरकार का तांडव शुरू होगा।