कांग्रेस पार्टी के असंतुष्ट नेताओं के समूह यानी जी-23 की चर्चा इन दिनों बंद है। बताया जा रहा है कि इस समूह के कुछ नेता राज्यसभा भेजे जा रहे हैं इसलिए सबने चुप्पी साध ली है। लेकिन पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद हुई कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में इस समूह के नेताओं ने कुछ सुझाव दिए थे, जिनमें से कम से कम एक सुझाव मान लिया गया है। कांग्रेस कार्य समिति की पिछली बैठक में राज्यसभा के उप नेता आनंद शर्मा ने सुझाव दिया था कि कांग्रेस अध्यक्ष के साथ कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इससे ऐसा मैसेज जाता है कि अध्यक्ष काम नहीं कर सकता है। One opinion of G 23
कांग्रेस आलाकमान ने इस सुझाव को मान लिया है क्योंकि कार्य समिति की उस बैठक के बाद दो राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त हुए हैं लेकिन उनके साथ कोई कार्यकारी अध्यक्ष नहीं नियुक्त किया गया है। इससे पहले कांग्रेस पिछले दो-तीन साल से हर अध्यक्ष के साथ चार-चार कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर रही थी। पंजाब में ही नवजोत सिंह सिद्धू के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए गए थे। झारखंड में राजेश ठाकुर के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष अब भी काम कर रहे हैं। उनसे पहले रामेश्वर उरांव अध्यक्ष थे तब भी चार कार्याकरी अध्यक्ष थे। बिहार में भी मदन मोहन झा के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष हैं।
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अभी कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब में अमरिंदर सिंह बरार उर्फ राजा वडिंग को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है और उनके साथ कोई कार्यकारी अध्यक्ष नहीं बनाया गया है। इसी तरह उत्तराखंड में कांग्रेस ने करण महरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है और उनके साथ भी कोई कार्यकारी अध्यक्ष नहीं नियुक्त हुआ है। अध्यक्ष के साथ चार चार कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने से पार्टी संगठन में भी बहुत कंफ्यूजन रहता है और टीम के साथ तालमेल नहीं बन पाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की वह धमक और ऑथोरिटी नहीं बन पाती है, जो बननी चाहिए।
आगे दो-तीन और राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त होने हैं। अगर वहां भी कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष नहीं बनाती है तो माना जाएगा कि उसने इस प्रयोग को छोड़ दिया है। बहरहाल, जी-23 के नेताओं ने यह सुझाव भी दिया था कि दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को प्रदेश में अध्यक्ष नहीं बनाना चाहिए। इसी तरह उन्होंने नरम हिंदुत्व की राजनीति से भी दूरी बनाने की भी सलाह दी थी और यह भी कहा था कि पार्टी अध्यक्ष को सहज रूप से उपलब्ध होना चाहिए। जमीनी हालात को समझने के लिए पार्टी नेतृत्व का आम कार्यकर्ताओं और जमीनी नेताओं से मिलना जरूरी है। इस कार्य समिति के बाद राहुल गांधी ने अलग अलग प्रदेशों के नेताओं से मिलना शुरू किया है।