यशवंत सिन्हा को विपक्ष ने जिस आनन-फानन तरीके से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया था उस से लगा था कि विपक्षी पार्टियों ने उनका नाम तय करने में ज्यादा विचार विमर्श नहीं किया है। शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी ने उम्मीदवार बनने से मना किया तो ममता बनर्जी की ओर से यशवंत सिन्हा का नाम प्रस्तावित किया गया और विपक्षी नेताओं ने आनन-फानन में उनका नाम घोषित कर दिया। पहले कांग्रेस अपना उम्मीदवार देना चाहती थी लेकिन उसने भी कदम पीछे खींच लिए। कुल मिला कर ममता बनर्जी और शरद पवार की सहमति से यशवंत सिन्हा का नाम तय हुआ। अब कई विपक्षी पार्टियां उनके नाम का विरोध कर रही हैं या भाजपा की आदिवासी महिला उम्मीदवार होने की वजह से मजबूरी में उनका समर्थन कर रही हैं।
भाजपा का साथ देने वाली पार्टियों बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस ने तो द्रौपदी मुर्मू का समर्थन कर ही दिया था अब भाजपा के विरोध में बयानबाजी करने वाली मायावती की पार्टी बसपा ने भी समर्थन कर दिया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा की भी मजबूरी है कि वह आदिवासी उम्मीदवार का समर्थन करे। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेतृत्व के सामने दुविधा है कि वह कैसे आदिवासी उम्मीदवार का विरोध करे। विपक्ष के कई नेता चाह रहे हैं कि देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बनाने के लिए सभी पार्टियां उनका समर्थन करें। वे यह भी चाहते हैं कि यशवंत सिन्हा नामांकन न करें। कम्युनिस्ट पार्टियों में भी दुविधा है कि वे ममता बनर्जी की पार्टी के नेता रहे और उनकी ओर से चुने गए उम्मीदवार का कैसे समर्थन करें। इसके बावजूद अगर यशवंत सिन्हा नामांकन करते हैं तो उन्हें विपक्षी उम्मीदवार को सामान्य रूप से मिलने वाले 30 फीसदी वोट भी नहीं मिलेंगे।
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