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विपक्ष की रणनीति या सचमुच का झगड़ा!

विपक्षी पार्टियां किसी रणनीति के तहत आपस में लड़ रही हैं या उनका झगड़ा सचमुच का है? यह लाख टके का सवाल है। अलग अलग पार्टियों के नेता अनौपचारिक बातचीत में इस सवाल का अलग अलग जवाब दे रहे हैं। विपक्षी एकता की रणनीति पर काम करने वाले एक जानकार नेता का कहना है कि चुनाव आते आते सारी पार्टियां एकजुट होंगी। उनका कहना है कि अभी एकता बनाने का कोई फायदा नहीं है, उलटे नुकसान हो सकता है। अगर अभी विपक्षी एकता बन जाती है और यह तय हो जाता है कि कांग्रेस के साथ मिल कर विपक्ष चुनाव लड़ेगा तो सभी पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं में भगदड़ मचेगी। जमीनी स्तर पर टकराव बढ़ेगा। इसलिए पार्टियां अभी अलग अलग राजनीति कर रही हैं।

विपक्षी पार्टियां यह भी सोच रही हैं कि अभी से एकता का मैसेज होगा तो भाजपा अलर्ट होगी और उसकी तैयारी भी उसी हिसाब से होगी। दूसरे, विपक्षी एकता बनती दिखेगी तो भाजपा और केंद्र सरकार किसी न किसी तरह से उस एकता को तोड़ने का प्रयास करेंगे। विपक्ष की कई पार्टियां इस चिंता में भी हैं कि कांग्रेस से ज्यादा नजदीकी दिखाएंगे तो केंद्रीय एजेंसियां पीछे पड़ेंगी। हालांकि यह विपक्ष की खुशफहमी है कि वे सब लोग आपस में लड़ रहे हैं तो भाजपा लापरवाह है। भाजपा में कोई लापरवाही नहीं है। वह दोनों स्थितियों के लिए तैयार है। विपक्ष अलग अलग लड़े या एक साथ मिल कर लड़े उसकी तैयारी चल रही है।

ध्यान रहे संसद के पिछले सत्र तक संसद में सभी पार्टियां एक रहती थीं। संसद के बाहर जरूर विपक्षी पार्टियों की राजनीति अलग अलग होती थी लेकिन संसद में मल्लिकार्जुन खड़गे की अपील पर डेढ़ दर्जन पार्टियां साथ आ जाती थीं। इनमें ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी शामिल होती थी और के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति के नेता भी रहते थे। समाजवादी पार्टी तो रहती ही थी। लेकिन इस बार संसद में तृणमूल, बीआरएस और सपा तीनों अपने तेवर दिखा रहे हैं। कहा जा रहा है कि रणनीति के तहत सभी विपक्षी पार्टियां अपनी अपनी राजनीति करने का मैसेज बनवा रही हैं।

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