जाने माने फिल्म अभिनेता और भाजपा के पूर्व सांसद परेश रावल के एक बयान को लेकर बड़ा विवाद हुआ। पश्चिम बंगाल के नेताओं ने उनके बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी और सीपीएम के नेता मोहम्मद सलीम ने तो केस भी दर्ज करा दिया। हालांकि विवाद होने पर परेश रावल ने सफाई दी और माफी भी मांगी। लेकिन असल में उनके बयान के सिर्फ एक पहलू पर चर्चा हुई और दूसरी बात चर्चा से बाहर रह गई। उनके बयान चर्चा सिर्फ इस नजरिए से हुई कि उन्होंने बंगालियों का अपमान किया लेकिन असल में उनका बयान इससे कहीं ज्यादा था। वे गुजरात के लोगों से कह रहे थे कि लोग रसोई गैस सिलेंडर की महंगाई झेल लें लेकिन बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को कैसे झेलेंगे।
सोचें, परेश रावल ने यह डर कहां दिखाया? हिंदुत्व की प्रयोगशाला कहे जाने वाले राज्य में, जहां भाजपा 27 साल से सत्ता में है और जहां जाकर बांग्लादेशी या रोहिंग्या मुसलमानों के बसने की एक भी घटना नहीं हुई है। फिर भी उन्होंने गुजरात के लोगों के उनका भय दिखाया और कहा कि दिल्ली की तरह अगर बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान आकर बस गए तो गुजराती लोग क्या करेंगे? पता नहीं परेश रावल जानते हैं कि या नहीं कि पिछले साढ़े आठ साल से दिल्ली की कानून व्यवस्था, जमीनों आदि का मामला केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ही देखती है और दिल्ली नगर निगम भी 15 साल से भाजपा के अधीन ही है। इसके बावजूद अगर बांग्लादेशी और रोहिंग्या हैं तो क्या गारंटी है कि गुजरात में भाजपा की सरकार रोक लेगी?
एक तो जहां विकास के नाम पर वोट मांगना था वहां भाजपा के पूर्व सांसद विदेशी मुसलमानों का भय दिखा कर वोट मांग रहे थे, जिससे ऐसा लग रह है कि भाजपा को खुद ही अपने विकास मॉडल पर ज्यादा भरोसा नहीं है। दूसरी खतरनाक बात यह है कि पार्टी आधिकारिक रूप से महंगाई को जस्टिफाई कर रही है और इसके लिए सांप्रदायिक तर्कों का सहारा ले रही है। बंगालियों के अपमान के साथ साथ इस पर भी चर्चा होनी चाहिए थी।