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ऐसा हंगामा सरकार को पसंद है

ByNI Political,
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ऐसा हंगामा सरकार को पसंद है
parliament Monsoon session ruckus संसद के मॉनसून सत्र में विपक्ष के हंगामे की वजह से भले लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला और राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू दुखी हों और निराशा जाहिर कर रहे हों पर सरकार इससे खुश है। इस तरह के हंगामे सरकार को पसंद आते हैं क्योंकि इसमें उसे तमाम विवादित विधेयक पास कराने में आसानी हो जाती है। वैसे भी मौजूदा सरकार आपदा को अवसर बनाने में माहिर है। सो, उसने विपक्ष के हंगामें के बीच अपने लिए अवसर बना दिया। इससे एक तीन से दो शिकार हुए। पहला तो सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाले पेगासस जासूसी मामले पर चर्चा नहीं हुई और दूसरे उसने कई ऐसे विधेयक पास करा लिए, जिन पर चर्चा होती तो उसके लिए जवाब देना मुश्किल होता। Read also लोकतंत्र के मंदिर की असली बेअदबी क्या है? मॉनसून सत्र की कार्यवाही निर्धारित समय से दो दिन पहले समाप्त होने के बाद जो आंकड़ा सामने आया है उसके मुताबिक विधायी कामकाज के लिहाज से इस बार का सत्र पिछले सात साल में राज्यसभा का सर्वाधिक उत्पादक सत्र रहा। इस सत्र में सरकार ने हर दिन औसतन 1.1 विधेयक पास कराए हैं। यह सत्र बहुत छोटा था और इसमें सिर्फ 17 दिन बैठक हुई और उसी में सरकार ने 19 विधेयक पास करा लिए। सोचें, अगर दो दिन और बैठक हो जाती तो सरकार दो-तीन विधेयक और पास करा लेती। Read also बंगाल में उपचुनाव की घोषणा जल्दी इससे पहले सरकार ने पिछले साल मॉनसून सत्र में सर्वाधिक विधेयक पास कराए थे। पिछले सात साल में जुलाई-अगस्त 2020 का मॉनसून सत्र सर्वाधिक उत्पादक रहा था। उस दौरान सरकार ने औसतन ढाई विधेयक एक दिन में पास कराए थे। वह कोरोना वायरस के पीक समय का सत्र था। चौतरफ डर और घबराहट का माहौल था। कोरोना प्रोटोकॉल के साथ पहला सत्र था, जिसमें सांसदों की उपस्थिति कम थी। उसी बीच सरकार ने अनेक बिल पास करा लिए। वह आपदा को अवसर बनाने की अच्छी मिसाल थी। Read also नौरत्नों के साथ सिद्धू चलाएंगे पंजाब कांग्रेस इस बार विपक्ष पेगासस जासूसी मामले पर चर्चा और जांच की मांग कर रहा था और केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहा था और उसी बीच सरकार धड़ाधड़ बिल पास करा रही थी। सरकार ने इसी बीच बिना बहस के कराधान बिल पास कराया, जिससे रेट्रोस्पेटिव टैक्स की व्यवस्था खत्म की गई और साथ ही सामान्य बीमा विधेयक भी पास करा लिया। अगर इस पर चर्चा होती तो निश्चित रूप से विवाद होता और विपक्ष इसे संसदीय समिति के पास भेजने की मांग करता। यह विधेयक ऐसे प्रावधान करता है, जिससे भारत सरकार की एक नहीं, बल्कि चारों सामान्य बीमा कंपनियों के निजीकरण का रास्ता साफ होता है। सरकार ने विपक्ष के हंगामे के बीच इसे पास करा लिया। अगर सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चल रही होती तब भी विपक्ष इस बिल को रोक नहीं सकता था लेकिन चर्चा होती तो कम से कम बिल के बारे में लोगों को जानकारी तो मिलती।
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