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राज्यसभा में धक्का-मुक्की, जांच मुमकिन नहीं!

ByNI Political,
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राज्यसभा में धक्का-मुक्की, जांच मुमकिन नहीं!
संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा में मॉनसून सत्र के दौरान 11 अगस्त को हुई घटना की कमेटी बना कर जांच कराना मुमकिन नहीं लग रहा है। कांग्रेस सहित लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने कमेटी बना कर जांच कराने के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया है। उच्च सदन में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो इसे विपक्ष को डराने की साजिश करार दिया है, जबकि प्रस्ताव सदन के सभापति यानी उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू की ओर से दिया गया है। कांग्रेस की तरह ही विपक्ष की दूसरी पार्टियां भी मान रही हैं कि राज्यसभा के अंदर मार्शल बुला कर सांसदों को बाहर निकलवाने और उस दौरान हुई धक्का-मुक्की की घटना की कमेटी बना कर निष्पक्ष जांच संभव नहीं है। उलटे इससे विपक्ष को बदनाम करने और हर घटना के लिए उसे जवाबदेह ठहराने का मौका सरकार को मिलेगा। Rajya Sabha inquiry committee कांग्रेस के संसदीय नेताओं में से एक ने कहा कि अगर विपक्षी पार्टियां जांच के लिए कमेटी बनाए जाने के प्रस्ताव पर राजी हो जाती हैं तो यह अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। इसका कारण यह है कि कोई भी कमेटी बनेगी तो उसमें सत्तारूढ़ भाजपा और उसकी प्रत्यक्ष व परोक्ष सहयोगी पार्टियों का बहुमत होगा। ऐसी कमेटी से निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं की जा सकती है। चूंकि संसद की स्थायी समितियों में भी भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों ने सारे काम बिल्कुल दलगत आधार पर किए हैं। चाहे लोक लेखा समिति हो या संचार व प्रौद्योगिक मामलों की समिति हो या वित्त मामलों की समिति हो पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर किसी समिति में विचार नहीं हो सका है। बहुमत के दम पर सत्तारूढ़ गठबंधन ने विपक्षी नेताओं की अध्यक्षता वाली कमेटियों में भी फैसले रूकवाए हैं। इसलिए यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि जब राज्यसभा की घटना की जांच के लिए कमेटी बनेगी तो वह निष्पक्ष रहेगी। दूसरे, घटना के एक दिन बाद ही सरकार ने आठ मंत्रियों की साझा प्रेस कांफ्रेंस करा कर विपक्ष पर हमला कराया था। यह अभूतपूर्व था कि एक साथ आठ मंत्रियों  ने बैठ कर विपक्ष पर हमला किया। उसी समय चार-पांच मंत्रियों का एक समूह राज्यसभा के सभापति से भी मिला और विपक्ष के सांसदों पर कार्रवाई करने की मांग की। सवाल है, जब सरकार यह मान कर बैठी है कि गलती विपक्ष की है और उस पर कार्रवाई होनी चाहिए तो फिर उसके सदस्यों के बहुमत वाली किसी कमेटी से निष्पक्ष जांच की उम्मीद कैसे की जा सकती है। विपक्ष के एक दो सांसदों ने यह सवाल भी उठाया है कि कोरोना महामारी के बीच पिछले साल जब सरकार ने जोर जबरदस्ती कृषि कानून पास कराए थे और सांसदों के साथ धक्का-मुक्की हुई थी, जिसके विरोध में सांसद संसद परिसर में महात्मा गांधी की मूर्ति के सामने उपवास पर बैठे थे, उस घटना की जांच क्यों नहीं कराई गई? विपक्ष के सांसदों का कहना है कि सरकार ने यह तरीका बना लिया है। उसे राज्यसभा में बहुमत नहीं है इसलिए जब भी कोई विवादित बिल आता है तो सरकार सदन में जोर जबरदस्ती करके बिल पास कराती है। विपक्ष का कहना है कि जांच कराने की बजाय सरकार सदन में चर्चा कराए।
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