संसद के हर सत्र के बाद बताया जाता है कि इस बार सत्र कितना उत्पादक रहा यानी कितना कामकाज हुआ। जैसे शीतकालीन सत्र के समाप्त होने के बाद बताया गया कि लोकसभा की उत्पादकता 97 फीसदी रही और राज्यसभा की 102 फीसदी रही। इसका मतलब है कि उच्च सदन में जितना कामकाज तय था उससे ज्यादा हुआ। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि संसद शानदार काम कर रही है। लेकिन संसद के कामकाज को सिर्फ उत्पादकता के नजरिए से देखना ठीक नहीं है। क्योंकि संसद की उत्पादकता अब किसी दूसरे सरकारी विभाग की उत्पादकता की तरह हो गई है। पिछले दो-चार साल से यह भी चलन शुरू हुआ है कि चुनाव प्रचार की वजह से संसद का सत्र जल्दी खत्म हो जाए या देर से शुरू किया जाए। ध्यान रहे विधायिका के लिए चुनाव होते हैं, चुनाव के लिए विधायिका नहीं है!
जिस तरह सरकारी कार्यालयों में कामकाज होता है उसी तरह संसद में काम हो रहा है। सरकार विधेयक लाती है और संसद से पास कर दिया जाता है। संसद का बस इतना काम कर रह गया है कि वह सरकार के विधेयक पास करे। पहले भी संसद सरकार के लाए बिल पास करती थी। लेकिन तब बिल पर चर्चा होती थी, विपक्ष के संशोधन पर भी चर्चा होती है और विधेयक संसद की स्थायी समितियों को भेजे जाते थे। संसद की साझा समितियां बनती थीं और विधेयक प्रवर समिति को भी भेजे जाते थे। संसद की स्थायी समितियों की रिपोर्ट पर चर्चा होती थी उसके सुझावों को बिल में शामिल किया जाता था।
संसद की लोक लेखा समिति इतनी अहम मानी जाती थी उसकी रिपोर्ट पर सरकार हिल जाती थी। लेकिन अब किसी को ध्यान नहीं है कि लोक लेखा समिति कोई जांच भी कर रही है। आमतौर पर लोक लेखा समिति देश के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक यानी सीएजी की रिपोर्ट की जांच करती है पर अब सीएजी की ही रिपोर्ट बहुत कम आ रही है। ऊपर से लोक लेखा समिति में भी सारी बातचीत पार्टी लाइन पर होती है और सत्तारूढ़ दल अपने बहुमत के दम पर सरकार के खिलाफ एक लाइन की रिपोर्ट भी मंजूर नहीं देता है। संसद में देश के हालात और जरूरी मुद्दों पर चर्चा नहीं होती है वह एक अलग बात है।
इस बार विपक्ष के सांसदों ने तवांग सेक्टर में चीन की घुसपैठ की कोशिश और भारतीय सैनिकों के साथ हुई झड़प पर चर्चा के अनगिनत नोटिस दिए लेकिन सरकार चर्चा के लिए राजी नहीं हुई। कुछ सांसदों ने महंगाई के मसले पर चर्चा का नोटिस दिया था उस पर भी सरकार चर्चा के लिए तैयार नहीं हुई। राफेल से लेकर पेगासस तक और अब चीन के मामले पर संसद के कई सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गए। कई विपक्षी सांसदों की शिकायत है कि अब सरकार की ओर से प्रश्नकाल में भी सवालों का सही जवाब नहीं दिया जा रहा है। सांसदों ने कहा है कि वे पूछते कुछ और कहा हैं, जवाब कुछ और मिलता है। एक सांसद का कहना है कि एक सवाल पर दो अलग अलग मंत्रालयों को जवाब अलग अलग होते हैं।
संसद की उत्पादकता का क्या मतलब?
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