
pegasus hacking case India : इजराइल के सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए हुई फोन हैकिंग और जासूसी के मामले में ज्यादातर ऐसे लोगों का नाम आ रहा है, जो सरकार के विरोध करते रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ सरकार विरोधियों के ही नाम ही इसमें शामिल हैं। सरकार से जुड़े या सरकार का समर्थन करने वाले अनेक लोगों के नाम भी इस हैंकिंग की सूची में शामिल हैं। क्या यह किसी रणनीति के तहत किया गया ताकि यह आरोप न लगे कि सिर्फ सरकार विरोधियों की जासूसी हुई है? सरकार में शामिल जिन लोगों की जासूसी होने की खबर है वे लगभग सभी मौजूदा नेतृत्व के बहुत करीबी लोग हैं।
हैकिंग की सूची के मुताबिक स्मृति ईरानी के एक सहयोगी का नंबर उसमें है। इसी तरह मौजूदा रेव मंत्री अश्विनी वैष्णव का भी नाम इस सूची में है। वे बरसों से भाजपा के मौजूदा नेतृत्व के पसंदीदा रहे हैं। इसी तरह संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल का नाम इस सूची में है। इसका भी मतलब समझ में नहीं आता है क्योंकि वे न राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े किसी मंत्रालय में हैं और न राजनीतिक रूप से बहुत हेवीवेट हैं। सरकारी लोगों में वसुंधरा राजे के सहयोगी का नाम सूची में होना जरूर समझ में आता है। उसके राजनीतिक कारण होंगे। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के साथ उनके संबंध तनाव वाले हैं और वे राजस्थान में स्वतंत्र रूप से राजनीति करती हैं।
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तभी सवाल है कि क्या इन नामों को किसी रणनीति के तहत सूची में रखा गया है ताकि ध्यान भटकाया जा सके? वैसे भी सुरक्षा प्रतिष्ठानों और खुफिया एजेंसियों के कामकाज की जानकारी रखने वालों को पता है कि यह टिप ऑफ आइसबर्ग है। सरकार की कई एजेंसियां अधिकृत रूप से हजारों फोन नंबरों को सर्विलांस पर रखती हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर, नक्सली गतिविधियों को रोकने के नाम पर, आर्थिक अपराध रोकने के नाम पर आधिकारिक रूप से फोन टेपिंग के लिए कई एजेंसियां अधिकृत हैं। वे सरकार की अनुमति से यह काम करती हैं। उसके मुकाबले पेगासस के जरिए तीन सौ लोगों की जासूसी कुछ भी नहीं है।
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