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पीएम केयर्स फंड की यह कैसी पारदर्शिता

ByNI Political,
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पीएम केयर्स फंड की यह कैसी पारदर्शिता
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पीएम केयर्स फंड का पैसा राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में ट्रांसफर करने की जरूरत नहीं है। भाजपा ने इस फैसले की हैरान करने वाली व्याख्या की। उसने दावा किया कि यह सबसे ज्यादा पारदर्शी फंड है और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी है। पारदर्शिता के नाम पर इस फंड में क्या है कि अब इसकी वेबसाइट पर यह सूचना डाल दी गई है कि पिछले वित्त वर्ष में यानी 2019-20 में इस फंड में कितना चंदा आया। सोचें, पिछला वित्त वर्ष खत्म होने के चार दिन पहले ही यह फंड बना था। सो, चार दिन में कितना फंड मिला यह बताया गया है। चार दिन में इसे तीन हजार करोड़ रुपए से ज्यादा फंड मिला था। चालू वित्त वर्ष की जानकारी अगले साल अप्रैल में डाली जाएगी। वेबसाइट पर भी डाली गई जानकारी में यह नहीं बताया जाएगा कि किसने कितना चंदा दिया। यानी चंदा देने वाले का नाम नहीं पता चलेगा। इस बारे में जानकारी न वेबसाइट पर डाली जाएगी, न आरटीआई के जरिए दी जाएगी, न सीएजी इसकी जांच करेगी और न संसद की लोक लेखा समिति इसकी जांच करेगी। सोचें, ऐसी पारदर्शिता है! सरकार ने पारदर्शिता का मतलब यह निकाला है कि वह बता देगी कि इतना पैसा आया और इतना खर्च हुआ। तभी मीडिया समूहों ने चंदे के बारे में पता लगाने के लिए एक दूसरा घुमावदार रास्ता निकाला है। इंडियन एक्सप्रेस ने देश के तमाम सार्वजनिक उपक्रमों, पीएसयू में आरटीई लगाई इस बारे में जानकारी के लिए। तब पता चला कि देश की 28 सरकारी कंपनियों ने इस फंड में दो हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का चंदा दिया है। मान लिया कि पीएम केयर्स फंड पब्लिक ऑथोरिटी नहीं है पर उसे चंदा देने वालों में तो सरकारी कंपनियां भी हैं, फिर उनके बारे में जानकारी क्यों नहीं दी जा सकती है।
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