
संभवतः पहली बार ऐसा हो रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश के नेता अपने शीर्ष नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं या उसके निर्देशों की अनदेखी करके स्वतंत्र राजनीति कर रहे हैं। आमतौर पर भाजपा में इन चीजों में बहुत अनुशासन होता है और नरेंद्र मोदी, अमित शाह के भाजपा की कमान संभालने के बाद यह अनुशासन और सख्त हो गया है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि लंबे समय तक केंद्र और राज्यों की सत्ता में रहने और बाहर से बड़ी संख्या में नेताओं के भाजपा में आने से अनुशासन का बंधन ढीला पड़ी है। बहरहाल, कारण चाहे जो लेकिन राजस्थान से लेकर कर्नाटक और झारखंड से लेकर पश्चिम बंगाल, बिहार तक में गजब गुटबाजी चल रही है। इसे खत्म करने के लिए पार्टी नेताओं को लगातार इन राज्यों में दौड़ लगानी पड़ रही है।
पिछले एक महीने में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तीन बार राजस्थान की यात्रा कर चुके। पिछले 15 दिन में ही दो बार वे राजस्थान गए और पार्टी नेताओं के साथ बैठक की। लेकिन प्रदेश के नेता अपनी अपनी पोजिशन पकड़े हुए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का खेमा अपनी इस बात पर कायम है कि पार्टी को उनकी कमान में ही अगला विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए तो दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया ने ऐलान कर दिया कि अगला चुनाव पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ेगी। उसके बाद से तनाव और बढ़ा है।
उधर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई की अनेक दिल्ली यात्राओं और अमित शाह की कर्नाटक यात्रा के बाद भी मामला सुलझ नहीं रहा है। मुख्यमंत्री बोम्मई और प्रदेश अध्यक्ष नलिन कुमार कतिल का कोई खास मतलब नहीं दिख रहा है। एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा हैं तो दूसरी ओर भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष हैं। झारखंड में एक पूर्व मुख्यमंत्री जेएमएम-कांग्रेस की सरकार गिरा कर किसी तरह से अपनी सरकार बनाने के पक्ष में हैं तो दो पूर्व मुख्यमंत्री और अन्य कई नेता मध्यावधि चुनाव चाहते हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से आए नेताओं के सहारे भाजपा चल रही है और उसके नेता एक एक करके पार्टी छोड़ रहे हैं। बिहार में भाजपा के नेता नीतीश कुमार समर्थक और नीतीश कुमार विरोधी खेमे में बंटे हुए हैं।