गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजों से समूचा विपक्ष बैकफुट पर है। गुजरात में कांग्रेस पार्टी का सफाया हो गया है और हिमाचल प्रदेश में भी वह बड़ी मुश्किल से मुकाबले में बनी रही। दिल्ली नगर निगम में 15 साल के राज के बाद भी भाजपा हारी पर उसका वोट प्रतिशत कम होने की बजाय बढ़ गया। सीटों की संख्या के मामले में भी एक्जिट पोल के तमाम अनुमान ध्वस्त हो गई। भाजपा 104 सीट जीतने में कामयाब रही है। इसलिए अब विपक्षी पार्टियां सबक लेंगी और भाजपा के खिलाफ मजबूत मोर्चा बनाने का प्रयास करेंगी ताकि उसे आगे टक्कर दी जा सके। हालांकि अरविंद केजरीवाल की राजनीति इस समय में भी फल फूल रही है इसलिए वे अब भी विपक्ष की राजनीति से दूर रहेंगे।
हालांकि संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने विपक्षी पार्टियों की रणनीति बैठक बुलाई तो उसमें तृणमूल कांग्रेस के साथ साथ आम आदमी पार्टी के नेता भी शामिल हुए। बाकी सारी पार्टियों तो इसमें शामिल हुई हीं। अब तक तृणमूल कांग्रेस विपक्षी राजनीति से दूरी बनाए हुए थी लेकिन अब उसे भी आशंका होगी की भाजपा उनके राज्य में अपना प्रदर्शन दोहरा सकती है। सो, संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष पहले की तरह बिखरा हुआ नहीं होगा, बल्कि एकजुट होगा और सत्र के बाद सारी पार्टियां विपक्ष का एकजुट मोर्चा बनाने के बारे में गंभीरता से विचार करेंगी। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने यह मुद्दा उठाया कि तृणमूल कांग्रेस को एक भी संसदीय समिति की अध्यक्षता नहीं दी गई है। सुदीप बंदोपाध्याय भी इस मसले पर उनके साथ खड़े हुए।