भारतीय जनता पार्टी लंबे समय की राजनीति योजना पर काम कर रही है। वैसे उसके नेता पहले भी कहते और मानते रहे थे कि भारत में सिर्फ दो ही पार्टियां होनी चाहिए। लेकिन इसके लिए उन्होंने कुछ खास नहीं किया। उलटे पुरानी भाजपा के नेताओं ने कई राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ तालमेल करके उनको मजबूत बनने में मदद की। चाहे बिहार में जदयू का मामला हो या पंजाब में अकाली दल या महाराष्ट्र में शिव सेना और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस या हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल हो या उत्तर प्रदेश में बसपा, झारखंड में आजसू, कर्नाटक में जेडीएस जैसी पार्टियां हों। इन पार्टियों के मुश्किल समय में या कमजोर होने के समय में भाजपा के साथ इनका तालमेल रहा।
अब एकाध अपवादों को छोड़ दें तो भाजपा पूरे देश में क्षेत्रीय पार्टियों को कमजोर करने का काम कर रही है। यह काम बहुत सुनियोजित तरीके से हो रहा है। बिहार में नीतीश कुमार के साथ भाजपा का लंबा तालमेल रहा है। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उनकी पार्टी को कमजोर करना का निर्णायक काम किया। भाजपा की शह पर चिराग पासवान ने जदयू के खिलाफ हर सीट पर उम्मीदवार उतारा और उसका नतीजा यह हुआ कि पिछले 20 साल में पहली बार जदयू की सीटें भाजपा से कम हुईं और नीतीश कुमार की पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। जदयू महज 43 सीटें जीत पाई। नीतीश अब भी मुख्यमंत्री हैं लेकिन उनकी हैसियत पहले जैसी नहीं रह गई है।
इसी तरह भाजपा ने महाराष्ट्र में अपनी पुरानी सहयोगी शिव सेना को बांट कर उसकी ताकत बहुत कम कर दी है। भाजपा ने शिव सेना में न सिर्फ विभाजन कराया, बल्कि उसके बागी नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया। अब यह दावा किया जा रहा है कि शिव सेना का पारंपरिक मतदाता उद्धव ठाकरे गुट के शिव सेना के साथ रहेगा, लेकिन यह सिर्फ अंदाजा है। इसकी वास्तविकता का पता अगले चुनावों में लगेगा। अगर शिंदे गुट भाजपा को छोड़ कर वापस उद्धव ठाकरे के साथ नहीं लौटता है तो फिर शिव सेना अपनी पुरानी ताकत नहीं हासिल कर पाएगी।
बिहार और महाराष्ट्र से अलग उत्तर प्रदेश में दूसरी रणनीति अपनाई गई। वहां किसी अज्ञात कारण से बहुजन समाज पार्टी निष्क्रिय हो गई और उसका वोट लगभग पूरी तरह से भाजपा को ट्रांसफर हो रहा है। आमतौर पर बसपा को हर चुनाव में 19 से 20 फीसदी वोट मिलते हैं लेकिन पिछले चुनाव में पार्टी इस कदर निष्क्रिय हुई कि उसका वोट घट कर 13 फीसदी रह गया। और मोटे तौर पर दलित वोट भाजपा की ओर शिफ्ट हुआ। इसी तरह तमिलनाडु में भाजपा की सहयोगी अन्ना डीएमके चार गुट में बंटी है। ओ पनीरसेल्वम, ई पलानीस्वामी, वीके शशिकला और टीटीवी दिनाकरण का अपना अपना गुट है। इनकी कमजोरी का फायदा भाजपा को होगा। भाजपा के साथ छोड़ने के बाद आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू और पंजाब में अकाली दल दोनों की ताकत घटी है।