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कांग्रेस के क्षत्रप मौका देख रहे

ByNI Political,
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कांग्रेस के क्षत्रप मौका देख रहे
पांच राज्यों के चुनाव नतीजों की कई तरह से व्याख्या हुई है। जिस पार्टी या नेता को जो नतीजा अपने अनुकूल लग रहा है वह उसका प्रचार कर रहा है। पश्चिम बंगाल में दो सौ से ज्यादा सीट जीतने का दावा करने वाली भाजपा 77 सीट जीतने को अपनी बड़ी जीत बता रही है तो एक भी सीट नहीं जीत पाने वाली कांग्रेस के नेता राहुल गांधी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बड़ी और शानदार जीत की बधाई दे रहे हैं। बंगाल से लेकर असम, तमिलनाडु, केरल और पुड्डुचेरी तक के नतीजों की ऐसी ही व्याख्या सब नेता अपने अपने हिसाब से कर रहे हैं। एक व्याख्या है कि कांग्रेस पार्टी क्षत्रपों की भी है, जिसके जरिए वे अपने लिए मौका आया देख रहे हैं। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु में डीएमके, पुड्डुचेरी में एनआर कांग्रेस और यहां तक कि केरल में लेफ्ट पार्टियों की जीत को लेकर भी कांग्रेस के क्षत्रप उत्साहित हैं और उनका कहना है कि अब प्रादेशिक पार्टियों का समय आ गया है। उनका कहना है कि असम के अपवाग तो छोड़ दें तो इस बार न कांग्रेस जीती है और न भाजपा। असम में भी भाजपा को असम गण परिषद और यूपीपीएल की वजह से जीत मिली है। इसके अलावा कांग्रेस की सहयोगी एआईयूडीएफ को असम में और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को केरल में सफलता मिली है। नतीजों की इस व्याख्या के बाद कांग्रेस के क्षत्रप नेताओं ने इशारों में इशारों में कहा है कि अब समय आ गया है कि कांग्रेस से अलग होकर क्षेत्रीय पार्टी बनाई जाए। हालांकि वे अभी कांग्रेस के साथ ही रहेंगे, लेकिन अगर कांग्रेस उनकी ऑथोरिटी को चैलेंज करती है तो उन्हें अलग होने में समय नहीं लगेगा। क्षेत्रीय पार्टियों और क्षत्रपों का समय आया हुआ है इस बात का सबसे ज्यादा प्रचार हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी कर रहे हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस आलाकमान अगर हुड्डा पर दबाव बनाए रखने की राजनीति से बाज नहीं आता है तो उनको अलग रास्ता चुनना होगा। पंजाब में कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने अपने को किसी दूसरी प्रादेशिक पार्टी के क्षत्रप नेता की तरह स्थापित किया है। वे कांग्रेस आलाकमान की बात नहीं सुनते हैं। उनको इस बार चुनाव नहीं लड़ना था लेकिन उन्होंने न सिर्फ चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, बल्कि पहले ही अपनी तैयारी शुरू कर दी है। उन्होंने पार्टी आलाकमान के कहने के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू को कोई जगह नहीं दी है। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष अपनी पसंद का बनवाया है और प्रभारी अपनी पसंद का रखा है। पंजाब और हरियाणा जैसी स्थिति किसी दूसरे राज्य की नहीं है, लेकिन छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, मध्य प्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत भी अपने मन के हिसाब से राजनीति करते हैं। इनकी सफलता का राज भी यही है कि ये स्वतंत्र क्षत्रप के तौर पर राजनीति करते हैं।
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