रियल पालिटिक्स

रिटायर नेताओं की आखिरी कोशिश

ByNI Political,
Share
रिटायर नेताओं की आखिरी कोशिश
देश के रिटायर हो गए समाजवादी नेता आखिरी कोशिश कर रहे हैं। इसे बासी कढ़ी में उबाल लाने की कोशिश भी कह सकते हैं। इसके बावजूद ऐसा नहीं है कि इसकी अनदेखी की जा सके। देश के कई पुराने क्षत्रप समाजवादी नेता किसी न किसी तरह से एक दूसरे से संपर्क कर रहे हैं और तीसरे मोर्चे की राजनीति करने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों की नजर इस तीसरे मोर्चे की राजनीति पर है क्योंकि दोनों को पता है कि अगर कोई तीसरा मोर्चा बनता है तो उसका बड़ा असर इन दोनों की राजनीति पर पड़ेगा। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इंडियन नेशनल लोकदल के नेता ओमप्रकाश चौटाला ने कहा है कि सितंबर में तीसरा मोर्चा बन जाएगा। सितंबर में नहीं बने तब भी अगर शुरुआत हो गई तो मोर्चा बनेगा जरूर। ध्यान रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चौटाला के यहां जाकर उनसे मुलाकात की थी। जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी भी उनके साथ थे। तीनों नेताओं ने बंद कमरे में लंबी बात की थी। यह बातचीत संभावित तीसरे मोर्चे को लेकर ही थी। उसके बाद से चौटाला की जेडीएस नेता एचडी देवगौड़ा और से मुलाकात हुई है। Read also  इस्लाम का सत्य और चीन की बर्बरता! दूसरी ओर लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव की मुलाकात हुई और अब शरद यादव भी सेहत ठीक होने के बाद सक्रिय हो गए हैं। सो, नब्बे के दशक में देश की राजनीति को चलाने वाले सारे पुराने क्षत्रप एक दूसरे से मिल रहे हैं और तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यह मामूली बात नहीं है। ध्यान रहे कांग्रेस और प्रशांत किशोर के तमाम प्रयास के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगले चुनाव में लड़ाई आमने-सामने की यानी भाजपा गठबंधन बनाम कांग्रेस गठबंधन की नहीं होगी। कई पार्टियां ऐसी हैं, जो इन दोनों गठबंधनों में नहीं रहेंगी। अगर उनको कोई पार्टी एकजुट कर दे तो अगले चुनाव की तस्वीर बदल सकती है। भाजपा चाहेगी कि कोई तीसरा मोर्चा बने क्योंकि उसको पता है कि तीसरे मोर्चे के क्षत्रप उसको नुकसान नहीं पहुंचाएंगे, बल्कि कांग्रेस गठबंधन को नुकसान पहुंचाएंगे। तीसरे मोर्चे की राजनीति भाजपा विरोधी वोट का बंटवारा करेगी। कांग्रेस नेता इस बात को समझ रहे हैं इसलिए वे इसे रोकने की कोशिश करेंगे। इस काम के लिए उनके पास लालू प्रसाद और एचडी देवगौड़ा हैं, जिनकी पार्टियों के साथ संबंधित राज्यों में कांग्रेस का तालमेल होना है। इस मामले में वामपंथी पार्टियों की भूमिका भी देखने वाली होगी। अभी तो वे कांग्रेस गठबंधन के साथ हैं लेकिन तृणमूल कांग्रेस की वजह से वे गठबंधन से किनारा भी कर सकते हैं।
Published

और पढ़ें