ऐसे सारे समय विपक्षी पार्टियां अपनी राजनीति करती रहेंगी। उनको न तो महात्मा गांधी याद आते हैं और न उनका परिवार। लेकिन जैसे ही राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति का चुनाव आता है विपक्षी पार्टियों को गांधी का परिवार याद आने लगता है। पांच साल पहले भी उप राष्ट्रपति चुनाव के समय गांधी के परिवार की याद आई थी तो विपक्ष ने खोज कर गोपाल कृष्ण गांधी को निकाला था और उनको चुनाव लड़ाया था। भाजपा के उम्मीदवार वेंकैया नायडू के मुकाबले गोपाल गांधी विपक्ष के साझा उम्मीदवार थे और उनको वेंकैया नायडू के मुकाबले आधे से भी कम वोट मिले थे। नायडू को 516 और गोपाल गांधी को 244 वोट मिले थे।
उस चुनाव के बाद अगले पांच साल गोपाल गांधी ने क्या किया इस बारे में संभवतः किसी विपक्षी पार्टी को कुछ भी पता नहीं होगा। वे दिल्ली से सटे हरियाणा के सोनीपत में अशोक यूनिवर्सिटी से जुड़े रहे और अध्ययन-अध्यापन के काम में लगे रहे। इस बीच किसी राजनीतिक दल को यह सुध नहीं रही कि उनको कोई पद दिया जाए। ममता बनर्जी बंगाल की मुख्यमंत्री है और गोवा से लेकर असम तक के नेताओं को राज्यसभा में भेजती रहीं लेकिन उनको कभी ऐसा नहीं लगा कि गोपाल गांधी को राज्यसभा में भेजें। कांग्रेस पार्टी ने एक बार उनको राज्यपाल बनाया, उसके बाद कभी कांग्रेस ने भी सुध नहीं ली।
ऐसा नहीं है कि विपक्षी पार्टियां महात्मा गांधी के प्रति किसी श्रद्धा के कारण गोपाल गांधी का नाम ले रही हैं या गोपाल गांधी की विद्वता, ईमानदारी से प्रभावित होकर उनको उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रही हैं। यह भी उनकी राजनीति का हिस्सा है। उनको लगता है कि किसी सक्रिय राजनेता की बजाय गोपाल गांधी का नाम ज्यादा वोट दिला सकता है। आखिर गोपाल गांधी के दादा महात्मा गांधी थे और नाना राजगोपालाचारी थे। इसलिए जो पार्टियां भाजपा के साथ नहीं हैं या नहीं जा सकती हैं उनको गोपाल गांधी के नाम पर अपने साथ लाया जाए। इसके सिवा उनके नाम की चर्चा कराने का दूसरा कोई कारण नहीं है।
गोपाल गांधी के भाई राजमोहन गांधी लंबे समय तक सक्रिय राजनीति में रहे। लेकिन जनता दल में रहते हुए सिर्फ दो साल के लिए राज्यसभा सांसद रहे। वे चुनाव लड़ते और हारते रहे। बापू के प्रति श्रद्धा रखने वाली इस देश की जनता ने भी उनको मौका नहीं दिया और न दिन-रात बापू के नाम की माला जपने वाली पार्टियों ने मौका दिया। सोचें, वे 2014 में पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी की टिकट से चुनाव लड़े और हार गए। उसके बाद से आम आदमी पार्टी ने 10 लोगों को राज्यसभा में भेजा है लेकिन उसको एक बार भी ख्याल नहीं आया कि राजमोहन गांधी को राज्यसभा में भेजें। उसके ज्यादातर राज्यसभा सांसद तिकड़मी या धनपति हैं।
फिर गांधी के पोते की याद आई
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