भाजपा और उसकी पुरानी सहयोगी पार्टी अकाली दल दोनों पंजाब में दलित वोटों के लिए बड़े बड़े वादे कर रहे हैं। अगले साल होने वाले चुनाव से पहले दोनों पार्टियों की नजर दलित वोटों पर है। इसका कारण यह है कि पंजाब में किसान, जो आमतौर पर जाट और जाट सिख हैं वे कांग्रेस का समर्थन करते दिख रहे हैं। केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध किसान पिछले 141 दिन से दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे हैं। इन आंदोलनकारी किसानों में बड़ा हिस्सा पंजाब के किसानों का है। पिछले दिनों पंजाब में शहरी निकायों के चुनाव हुए थे, जिनमें भाजपा और अकाली दल दोनों का सुपड़ा साफ हो गया। तभी दोनों पार्टियों ने अपनी रणनीति बदली है और दलित वोट को लुभाने का प्रयास शुरू किया है।
इस प्रयास में भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा वादा किया है। भाजपा ने कहा है कि राज्य में उसकी सरकार बनी तो वह किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाएगी। ध्यान रहे देश के किसी दूसरे राज्य के मुकाबले पंजाब में ज्यादा दलित हैं। वहां 33 फीसदी आबादी दलितों की है। इसलिए कायदे से भाजपा का वादा अपील करना चाहिए पर मुश्किल यह है कि भाजपा के पास पंजाब में वोट की कोई खास पूंजी नहीं है। वह हमेशा अकाली दल के सहारे लड़ती रही है। पिछले दिनों भाजपा ने पंजाब के विजय सांपला को अनुसूचित आयोग का अध्यक्ष बनाया है। इस तरह भाजपा ने पंजाब के दलितों को एक बड़ा मैसेज दिया है।
बहरहाल, अकाली दल ने वादा किया है कि उसकी सरकार बनी तो वह दलित उप मुख्यमंत्री बनाएगा। अकाली दल में मुख्यमंत्री का पद सुखबीर बादल के लिए आरक्षित है लेकिन दलित उप मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। इस तरह जाट सिख और दलित दोनों वोटों को पटाने का दांव चला गया है।