अकाली दल से अलग होने के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी पंजाब में बिसात बिछा रही थी। उसे अपने प्रयास में काफी हद तक कामयाबी मिल गई है। कांग्रेस के अंदरूनी झगड़े की वजह से अलग हुए कैप्टेन अमरिंदर सिंह और अकाली दल में बादल पिता-पुत्र की राजनीति से नाराज होकर अलग हुए सुखदेव सिंह ढींढसा दोनों भाजपा के साथ तालमेल कर रहे हैं। पंजाब में इन दोनों नेताओं का अच्छा आधार है और भाजपा के साथ मिल कर लड़ने से यह गठबंधन एक मजबूत ताकत बन गया है। यह पहली बार हो रहा है कि पंजाब में चारकोणीय मुकाबले का मैदान सजा है। punjab assembly elections BJP
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सत्तारूढ़ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी आम आदमी पार्टी के बाद अकाली दल और कैप्टेन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस का गठबंधन चुनाव लड़ेगा। भाजपा की वजह से कैप्टेन के मोर्चे को हिंदू वोटों का कुछ फायदा हो सकता है तो साथ ही उनके अपने चेहरे पर जाट सिख समुदाय का कुछ वोट जरूर मिलेगा। इसका नुकसान अकाली दल को भी होगा और आम आदमी पार्टी को भी। दूसरी ओर अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी का तालमेल हुआ है, जिसकी वजह से दलित वोट का एक हिस्सा उनके साथ जाएगा। इसका नुकसान कांग्रेस को होगा क्योंकि कांग्रेस ने दलित मुख्यमंत्री बना कर पूरा वोट हासिल करने का दांव चला है।
इस चारकोणीय मुकाबले में अगर पंजाब विधानसभा त्रिशंकु बनती है तो भाजपा के लिए बल्ले बल्ले हो जाएगी क्योंकि फिर वह कैप्टेन, अकाली सबको साथ भी ला सकती है और सरकार बनवा सकती है। उसके लिए पंजाब में कांग्रेस को दूसरी बार सरकार बनाने से रोकने का मौका बनेगा।
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