दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से पहले 15 साल तक कांग्रेस की सरकार थी। उन 15 सालों में केंद्र में छह साल तक भाजपा की सरकार रही। लेकिन कभी केंद्र और राज्य का झगड़ा सुनने को नहीं मिला। अलग अलग पार्टियों में होने के बावजूद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बीच सद्भाव रहा है और यह सद्भाव सरकारों के कामकाज में दिखा। कानून व्यवस्था को लेकर समस्याएं हुईं और पार्टियों ने एक-दूसरे के खिलाफ बयान भी दिया लेकिन झगड़े की नौबत नहीं आई। परंतु राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद कोई दिन ऐसा नहीं बीता है, जब राज्य सरकार का केंद्र से किसी न किसी मसले पर विवाद नहीं हुआ। Punjab politics bjp Aap
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इसी तरह पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार बनते ही राज्य सरकार का केंद्र के साथ झगड़ा शुरू हो गया। भाखड़ा व्यास मैनेजमेंट बोर्ड में केंद्र सरकार ने बाहर के लोगों को नियुक्त करने का फैसला किया और उसके साथ ही राज्य की विधानसभा में एक प्रस्ताव पास करके चंडीगढ़ पर पंजाब का पूरा नियंत्रण देने की मांग की गई। केंद्र से दो साल में एक लाख करोड़ रुपया मुख्यमंत्री मांग चुके हैं, जिसे लेकर अगले कुछ दिन में केंद्र के खिलाफ अभियान छिड़ेगा। सवाल है कि क्या आम आदमी पार्टी अपनी राजनीति के तहत भाजपा से लड़ती है ताकि उसे देश भर में भाजपा का विकल्प माना जाए या भाजपा अपनी तरफ से उसे मौका देती है ताकि कांग्रेस की बजाय आप उससे लड़ती दिखे और कांग्रेस लोगों की नजरों से ओझल हो? दोनों बातें हो सकती हैं।