भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने और इसके विस्तार का अंदाजा लगाने के लिए देश के कई शहरों में सीरे सर्वेक्षण कराया जा रहा है। इससे लोगों के शरीर में एंटीबॉडी की मौजूदगी का पता लगाया जा रहा है, जिस आधार पर दावा किया जा रहा है कि कितने प्रतिशत लोगों को कोरोना हो चुका है। जैसे दिल्ली में दो सर्वेक्षणों में क्रमशः 23 और 29 फीसदी लोगों को कोरोना हो जाने का नतीजा आया। कहा गया कि ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं चला कि उनको कोरोना हो गया और वे ठीक भी हो गए। मुंबई में धारावी की झुग्गियों में 57 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी मिली। हरियाणा में आठ फीसदी तो ओड़िशा के भुवनेश्वर में पांच फीसदी लोगों में एंटीबॉडी मिली।
पर अब दिल्ली में एक हैरान करने वाली जानकारी मिली है। दिल्ली में अगस्त के अंत में हुए सीरो सर्वेक्षण से पता चला है कि कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके 30 फीसदी लोगों के शरीर में एंटीबॉडी नहीं मिली है। सर्वेक्षण के दौरान 257 ऐसे लोगों का सैंपल लिया गया था, जिनको कोरोना का संक्रमण हुआ था और वे इलाज से ठीक हुए थे। उनमें से 79 लोगों के शरीर में एंटीबॉडी नहीं मिली। अब सोचें, ऐसे सर्वेक्षण का क्या फायदा। जब गारंटीशुदा संक्रमित के शरीर में एंटीबॉडी नहीं मिल रही है तो फिर किसी स्वस्थ आदमी के शरीर में एंटीबॉडी मिलने पर उसे कोरोना होने का अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है? कुल मिला कर कोरोना का पूरा मामला धूल में लट्ठ मारने का मामला लग रहा है।
सीरो सर्वे की उपयोगिता पर बड़ा सवाल
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