राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का रास्ता वाया हाथरस बन रहा है। पहले लग रहा था कि कोरोना वायरस के बारे में की गई अपनी भविष्यवाणियों या देश की अर्थव्यवस्था के बारे में दी गई चेतावनियों के रास्ते राहुल कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे। इसके बाद कृषि से जुड़े तीन विवादित विधेयक आ गए, जिनका राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी ने जोरदार विरोध किया है। तो लगा कि किसान आंदोलन के जरिए राहुल एक बार फिर पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचेंगे। आखिर भूमि अधिग्रहण बिल पर सरकार के पीछे हटने के बाद दिल्ली के रामलीला मैदान की विशाल रैली के जरिए राहुल गांधी बिंग बैंग के साथ दोबारा लांच किए गए है। उस समय वे 56 दिन कहीं अज्ञातवास में बिता कर लौटे थे।
बहरहाल, अब ऐसा लग रहा है कि हाथरस कांड के सहारे राहुल कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचेंगे। कांग्रेस में उनके करीबी लोग इससे बहुत खुश हैं पर ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते, जिससे यह मैसेज जाए कि राहुल गांधी या कांग्रेस ने हाथरस में दलित परिवार के साथ हुई घटना को अपने लिए अवसर बनाया। हालांकि कुछ छोटे-छोटे नेताओं ने इसे लेकर ट्विट कर दिया है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी अपने एक ट्विट में हाथरस की घटना को मौका माना है पर उन्होंने मौका शब्द को इनवर्टेड कॉमा में डाल दिया है, जिससे लगे कि वे कोई दूसरा अर्थ बताना चाह रहे हैं।
बहरहाल, राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने हाथरस के ‘मौके’ को लपक लिया है। इससे दोनों के अपने अपने फायदे हैं। प्रियंका को उत्तर प्रदेश की राजनीति में इससे फायदा होने की उम्मीद है। प्रियंका ने इस घटना के जरिए स्ट्रीट फाइटर की अपनी छवि दिखाई है। वे पहले भी इस तरह के राजनीतिक प्रदर्शनों में शामिल होती रही हैं पर इस प्रदर्शन का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि दलित राजनीति करने वाले प्रदेश के लगभग सारे नेता दृश्य से गायब हैं। दूसरे, प्रियंका को उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए डेढ़ साल से ज्यादा हो गए हैं और वे वहां टिक कर राजनीति कर रही हैं। सो, लोग उनको गंभीरता से लेने लगे हैं। हाथरस की घटना उनकी राजनीति को धार देगी।
जहां तक राहुल गांधी का सवाल है तो कांग्रेस के कोई नेता हाथरस की घटना को राहुल के लिए बेलछी मोमेंट मान रहे हैं। ध्यान रहे 1977 में चुनाव हारने के बाद इंदिरा गांधी ने सबसे पहला दौरा बिहार के बेलछी का किया था, जहां दलितों का नरसंहार हुआ था। वे बड़ी मुश्किल से वहां पहुंच पाई थीं। राहुल की तरह उनको सरकार ने नहीं रोका था पर उन दिनों बरसात के समय में बिहार के किसी भी गांव में पहुंचना मुश्किल होता था। बेलछी के दलित परिवारों के साथ इंदिरा गांधी का खड़ा होना राजनीति का गेमचेंजर साबित हुआ था। हालांकि अब राजनीति ज्यादा जटिल हो गई है फिर भी राहुल के लिए यह गेमचेंजर साबित हो सकता है। पुलिस के साथ उनकी धक्कामुक्की और जमीन पर उतर कर की गई राजनीति के बाद पार्टी के ज्यादातर नेता मानने लगे हैं कि उनको अध्यक्ष बन जाना चाहिए।
राहुल को अध्यक्ष बनाने का रास्ता
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