सोचें, कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को मानहानि के मामले में हुई दो साल की सजा के खिलाफ सूरत की ही जिला अदालत में अपील करने जा रही है। बताया जा रहा है कि सोमवार को सूरत की जिला व सत्र अदालत में अपील की जाएगी। सवाल है कि जब सूरत की अदालत में ही अपील करनी थी तो सूरत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के फैसले को अंग्रेजी में अनुवाद कराए जाने के बहाने का क्या मतलब था? ध्यान रहे सूरत के सीजेएम ने 106 पन्ने का फैसला गुजराती में लिखा था। सो, कांग्रेस की ओर से कहा गया कि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए फैसले का गुजराती से अंग्रेजी में अनुवाद होना जरूरी है इस आधार पर अपील में देरी को जस्टिफाई किया गया।
लेकिन अब कांग्रेस सूरत में ही अपील कर रही है, जहां अपील करने के लिए फैसले के ट्रांसलेशन की जरूरत नहीं है। वहां गुजराती भाषा के फैसले के साथ ही अपील हो सकती थी। इसका मतलब है कि तत्काल अपील नहीं करना या तो कांग्रेस की कानूनी टीम की गलती थी या रणनीतिक फैसला था, जिसे अनुवाद के बहाने जस्टिफाई किया गया। वैसे भी अगर हाई कोर्ट में भी अपील करनी होती तो फैसले के ऑपरेटिंग पार्ट का अनुवाद करके अपील हो सकती थी। आखिर अपील करते ही अदालत कोई फैसला नहीं सुनाती। उसकी ओर से नोटिस जारी होता और उस बीच फैसले का अनुवाद हो जाता।
दूसरा बहाना यह बताया गया है कि कांग्रेस पार्टी लक्षद्वीप के एनसीपी सांसद मोहम्मद फैजल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही थी। गौरतलब है कि फैजल की सजा पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी लेकिन लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता बहाल नहीं की थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ठीक पहले फैजल की सदस्यता बहाल हो गई। ये सारे बहाने राहुल को सजा हो जाने के बाद के हैं ताकि कांग्रेस को थोड़ा समय मिल जाए और वह इस घटनाक्रम का अधिकतम राजनीतिक लाभ ले सके।