कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पहली बार खुल कर जातीय जनगणना का समर्थन किया है। यह नीतीश कुमार इफेक्ट है। पिछले हफ्ते नीतीश दिल्ली आए थे और मल्लिकार्जुन खड़गे व राहुल गांधी से उनकी लंबी मुलाकात हुई थी। उसके बाद रविवार को राहुल कर्नाटक के कोलार में जनसभा को संबोधित करने पहुंचे थे, जहां उन्होंने यूपीए के शासन में 2011 में हुई जनगणना के जातिवार आंकड़े जारी करने की चुनौती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी। इतना ही नहीं रैली के बाद राहुल ने एक ट्विट किया, जिसमें कहा- जितनी आबादी, उतना हक! जातीय जनगणना हर वर्ग को सही प्रतिनिधित्व देने का आधार है, वंचितों का अधिकार है।
अब तक राजद, जदयू, सपा या इस तरह की कुछ और प्रादेशिक पार्टियां जातीय जनगणना का समर्थन कर रही थीं। पहली बार है, जब कांग्रेस ने इस तरह से खुल कर जातियों की गिनती की बात कही है। इससे दो बातें साफ हो गई हैं। पहली बात तो यह कि नीतीश कुमार कांग्रेस को अपना एजेंडा समझाने में सफल हो गए हैं। ध्यान रहे बिहार में जातीय जनगणना चल रही है। उसका दूसरा चरण शुरू हो गया है और अगले दो-तीन महीने में इसके आंकड़े आ जाएंगे। दूसरी बात यह साफ हो गई है कि अगला चुनाव कांग्रेस और उसके गठबंधन के सहयोगी सामाजिक न्याय के मुद्दे पर लड़ेंगे।
कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी को नीतीश की बात समझ में आई है। बताया जा रहा है कि जब नीतीश मिलने पहुंचे तो राहुल बहुत अनिच्छुक थे। वे चुपचाप बैठे हुए थे काफी देर तक नीतीश अकेले बोलते रहे। बाद में खड़गे ने उनके साथ बातचीत की। संवाद उन्हीं दोनों के बीच होता रहा। कहा जा रहा है कि राहुल ने दार्शनिक अंदाज में कुछ बातें कहीं। वे व्यावहारिक राजनीति की बातों पर चुप थे। फिर नीतीश ने सामाजिक न्याय का एजेंडा बताते हुए कहा कि इसका सबसे ज्यादा लाभ कांग्रेस को होगा। तब राहुल चैतन्य हुए और बातचीत में शामिल हुए।
नीतीश से मुलाकात के बाद राहुल की पहली रैली कोलार में हुई, जहां उन्होंने ओबीसी का अपमान करने के भाजपा के आरोपों का पहली बार विस्तार से जवाब दिया और जातीय जनगणना का समर्थन किया। असल में नीतीश ने कांग्रेस को समझाया है कि भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे का जवाब मंडल की राजनीति से ही दिया जा सकता है। नब्बे के दशक में समाजवादी पार्टियां इसी एजेंडे से भाजपा को टक्कर दे चुकी हैं। अगले चुनाव में फिर से इसे आजमाया जाएगा। तभी राहुल गांधी ने कर्नाटक के भाषण में प्रधानमंत्री से सवाल किया कि कि उनकी सरकार में सिर्फ सात फीसदी सचिव ही क्यों ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय के हैं। इसके बाद उन्होंने आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा खत्म करने की अपील की। इसी एजेंडे के आसपास विपक्ष की राजनीति होगी।