राहुल गांधी ने विपक्षी पार्टियों के बीच तालमेल की जरूरत बताई उससे पहले ही उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने उनके नाम का ऐलान कर दिया था। उन्होंने कह दिया था कि 2024 में कांग्रेस और विपक्ष की ओर से राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे। पुरानी कहावत है कि ‘बनिया उधार नहीं दे रहा और आप कह रहे हो कि कम मत तौलना’। विपक्षी पार्टियां अभी कांग्रेस के साथ तालमेल को राजी नहीं हो रही हैं और कांग्रेस ने राहुल गांधी के नाम की घोषणा कर दी। हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस पर बहुत सधी हुई प्रतिक्रिया दी और कहा कि इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन पहले बातचीत तो हो।
सोचें, अभी बातचीत शुरू नहीं हुई है और उससे पहले ही कमलनाथ ने नाम की घोषणा कर दी। कांग्रेस की इस घोषणा को किसी पार्टी ने अच्छा नहीं माना है। लेकिन चूंकि बिहार में कांग्रेस ने अपने 19 विधायकों के साथ सरकार को समर्थन दिया है और झारखंड में भी कांग्रेस विधायकों के समर्थन से सरकार चल रही है। इसलिए इन दोनों राज्यों के नेताओं का अलग मामला है। लेकिन बड़ी विपक्षी पार्टियां, जैसे तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, भारत राष्ट्र समिति, आम आदमी पार्टी आदि के साथ कैसे तालमेल बनेगा? इन पार्टियों के नेता जदयू, राजद, जेएमएम, एनसीपी या डीएमके की तरह सहज रूप से राहुल गांधी की दावेदारी नहीं स्वीकार करेंगे।
ऊपर से राहुल गांधी का यह एटीट्यूड है कि समाजवादी पार्टी की विचारधारा उत्तर प्रदेश के लिए ठीक है पर देश के लिए ठीक नहीं है। सोचें, जो समाजवादी विचार उत्तर प्रदेश के लिए ठीक है वह देश के लिए कैसे ठीक नहीं है? क्या विचारधारा से राहुल का मतलब सपा के वोट समीकरण से था? क्या वे यह कहना चाह रहे थे कि सपा का मुस्लिम और यादव का समीकरण देश में नहीं चलेगा? ध्यान रहे हर पार्टी का अपना इस तरह का वोट समीकरण है और कांग्रेस को उसे निशाना नहीं बनाना चाहिए। दूसरे, कांग्रेस राष्ट्रीय विचारधारा पर अपना एकाधिकार नहीं माने। यह ध्यान रखना होगा कि नाम घोषित करके और अपनी विचारधारा को श्रेष्ठ बता कर कांग्रेस तालमेल नहीं कर पाएगी।