कांग्रेस की स्थिति सिर्फ चुनावी राजनीति में भी फिसड्डी नहीं हो गई है, बल्कि चुनावी चंदे के मामले में भी उसकी स्थिति बहुत खराब है। भाजपा को मिलने वाले चंदे में तो वह कहीं टिकती नहीं है लेकिन क्षेत्रीय पार्टियां भी उससे आगे निकल गई हैं। यह स्थिति तब है, जब तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। पिछले साल भी कांग्रेस की दो राज्यों में सरकार थी और उस समय के आंकड़ों में भी कई प्रादेशिक पार्टियां कांग्रेस से आगे रही हैं। भाजपा की तो स्थिति यह है कि इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए चंदे में 72 फीसदी चंदा अकेले भाजपा को मिलता है। बाकी 28 फीसदी में देश की सभी पार्टियां हैं। देश की बड़ी नौ पार्टियों को जितना चंदा मिला है उसका ढाई गुना चंदा भाजपा को मिला है।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक इलेक्टोरल ट्रस्ट से मिलने वाले चंदे में भाजपा को पिछले साल 351.50 करोड़ रुपया चंदा मिला है। सबसे हैरानी की बात है कि देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को सिर्फ 18.44 करोड़ रुपया चंदा मिला है। लेकिन कम से कम चार प्रादेशिक पार्टियों को इससे ज्याद चंदा मिला है। भाजपा के बाद जिस पार्टी को सबसे ज्यादा चंदा मिला है वह के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति है। उसे कांग्रेस को मिले चंदे के दोगुने से ज्यादा चंदा मिला है। बीआरएस को 40 करोड़ रुपए का चंदा मिला। समाजवादी पार्टी को 27 करोड़ रुपए, आम आदमी पार्टी को 21.12 करोड़ और जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस को 20 करोड़ रुपया चंदा मिला।