अमेरिका के दबाव में ही सही लेकिन भारत सरकार को सद्बुद्धि आई और उसने रूस से तेल खरीद बढ़ाने की पहल को धीमा कर दिया है। मजेदार बात यह है कि थोड़े दिन पहले तक भारत सरकार के जो मंत्री भारत के हितों की दुहाई दे रहे थे और मीडिया में सीना ठोक कर कह रहे थे कि भारत को अगर सस्ता तेल रूस से मिल रहा है तो वह खरीदेगा, अमेरिका कौन होता है नसीहत देने वाला है, वो सब लोग चुप हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री, विदेश मंत्री और पेट्रोलियम मंत्री तीनों ने कहा था कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों पर कोई समझौता नहीं करेगा और उसे अगर रूस से सस्ता तेल मिल रहा है तो वह खरीदेगा। russia ukraine conflict usa
सरकारी पेट्रोलियम कंपनियों ने रूस से कच्चे तेल की खरीद भी बढ़ा दी थी। ध्यान रहे भारत के कुल तेल आयात में रूस से होने वाले आयात का हिस्सा दो फीसदी से भी कम है। इस बार ऐसा लग रहा था कि रूस यूक्रेन युद्ध से पहले वाली कीमत यानी 24 फरवरी से पहले वाली कीमत पर भारत को तेल देगा तो भारत ज्यादा तेल खरीदेगा। खराब क्वालिटी का कच्चा तेल होने, बीमा महंगा होने और लंबे रूट से ढुलाई पर होने वाले खर्च के बावजूद भारत को इसमें फायदा था। ध्यान रहे भारत हर साल सौ अरब डॉलर यानी करीब नौ लाख करोड़ रुपए का कच्चा तेल खरीदता है। ऐसे में अगर प्रति बैरल दो-चार डॉलर का भी फायदा हो तो भारत को अच्छी खासी बचत हो सकती है।
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इसी तर्क से भारत सरकार के मंत्री रूस से तेल खरीद बढ़ाने को सही ठहरा रहे थे और पाकिस्तान के तब के प्रधानमंत्री इमरान खान भी कह रहे थे कि भारत एक खुद्दार कौम है, उसकी विदेश नीति स्वतंत्र है और उसको किसी महाशक्ति की जरूरत नहीं है। लेकिन अचानक सब कुछ बदल गया। भारत सरकार के दो वरिष्ठ मंत्री टू प्लस टू की वार्ता के लिए अमेरिका गए और वहां अमेरिका ने रूस से तेल खरीद पर सवाल उठाया। अमेरिका पहले भी सवाल उठाता रहा था। लेकिन इस बार का दबाव काम आया।
उधर टू प्लस टू की वार्ता शुरू हुई और इधर भारत सरकार की सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने अपने टेंडर में से उरल्स श्रेणी के कच्चे तेल को अलग कर दिया। इंडियन ऑयल उरल्स श्रेणी का कच्चा तेल नहीं खरीदेगा। ध्यान रहे रूस इसी श्रेणी का तेल बेचता है। इसकी क्वालिटी थोड़ी खराब होती है और इसकी रिफाइनरी का खर्च ज्यादा होता है। बहरहाल, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री के साथ वार्ता में यह भी कह दिया कि रूस से तेल खरीदने वाले देशों की सूची में भारत शीर्ष 10 देशों में नहीं शामिल होगा। इसका मतलब है कि भारत पहले जितना तेल खरीदता रहा है, उसके आसपास ही खरीद करेगा।